Re: डार्क सेंट की पाठशाला
सामूहिकता में विश्वास
बात उस समय की है जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश को ब्रिटिश गुलामी से मुक्त कराने के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। आजाद हिंद फौज के जवानो के साहस और उनकी एकता से अंग्रेज भी खौफ खाया करते थे। सभी जवानो में आपस में ऐसा तालमेल था कि कोई चाहकर भी उन्हे अलग करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में सभी संप्रदायों के लोगों को शामिल होने का न्यौता दिया था। उनका विचार था कि भारत में रहने वाले सभी हिंदु, मुस्लिम, सिख आदि पहले भारतीय हैं फिर कुछ और। इसलिए वे आजाद हिंद फौज के दरवाजे सभी के लिए खुले रखते थे। जिसके भी सीने में देश को आजाद करने की आग हो और जो फौज के सभी जवानो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर सके वह उनकी फौज में शामिल हो सकता था। इसलिए आजादी की इस सेना में सभी तरह के लोग थे। उन्ही में से कैप्टन शाहनवाज खान भी आजाद हिंद फौज में शामिल हुए थे। एक बार अंग्रेजों ने उनकी किसी गतिविधि को लेकर उन पर मुकदमा दायर किया। कैप्टन के वकील बने भूलाभाई देसाई। इस बीच मुहम्मद अली जिन्ना ने कैप्टन शाहनवाज खान को संदेश भिजवाया कि यदि आप आजाद हिंद फौज के साथियों से अलग हो जाएं तो मुस्लिम भाई होने के नाते मैं आपका मुकदमा लड़ने को तैयार हूं। शाहनवाज खान ने तत्काल जवाब भिजवाया-हम सब हिंदुस्तानी कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारे कई साथी इसमें शहीद हो गए और हमें उनकी शहादत पर नाज है। आपकी पेशकश के लिए शुक्रिया। हम सब साथ-साथ ही उठेंगे या गिरेंगे, परंतु साथ नहीं छोड़ेंगे। उनके इस सटीक जवाब से उनके सभी साथी बहुत प्रसन्न हुए। उन्हीं में से एक बोला-धर्म और जाति की संकीर्णता से ऊपर रहने वाला देश ही उन्नति करता है। इसलिए हमें समानता की दृष्टि से सबको देखते हुए सामूहिकता में विश्वास रखना चाहिए।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
|