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Old 05-02-2012, 09:22 PM   #7
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
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Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच

" अरे - - - ये क्या कह डाला आपने ! वैसे इस समय तो आप मुझे देवता जान पड़ रहे है - - - देवता . " गुलशन शर्मिंदगी के साथ बोला .
" अरे नहीं भई , आदमी इंसान ही बन जाए - - - यही क्या कम है . देवता तो बड़ी दूर की चीज है . वास्तव में- - - आदमी और इंसान के बीच में ही बड़ी दूरी है . लोग प्रायः इसी सफ़र में थक जाते है . आगे के कहने ही क्या . हाँ - - - तो बताओ , तुम्हे मेरा प्रस्ताव मंजूर है ? "
" माफ़ कीजियेगा - - - नहीं . " गुलशन ने कुछ सोच कर जवाब दिया और बोला -- " सर जी ! मेरी और आपकी परिस्थितियों व स्तर में बहुत अंतर है . और मेरे विचार में - - - अपनी इज्जत व स्वाभिमान बनाए रखने के लिए आदमी को अपनी सीमाएं मानकर चलना चाहिए . आपकी मदद मेरी मुश्किलें तो आसान कर सकती है , मगर इसके बोझ तले दबकर मेरे स्वाभिमान की जान जाने का खतरा है . और वैसे भी - - - मैंने अपनी एकाकी ज़िन्दगी से बहुत कुछ समझौता कर लिया है . मुझे अकेले रहने में विशेष तकलीफ नहीं होती . "
प्रोफ़ेसर साहब ने समझाने का प्रयास किया -- " हो सकता है की तुम मेरी बात से सहमत न हो और प्रजातंत्र में तुम्हे इसका हक़ भी है - - - लेकिन मेरी एक सीमा तक कामयाब ज़िन्दगी का अनुभव तो ये कहता है कि आदमी को अपनी रोजाना की जिन्दगी में छोटी - छोटी बातों के बीच स्वाभिमान को लाना ही नहीं चाहिए . सरल और सफल ज़िन्दगी के लिए सुविधाजनक ये रहता है कि दोस्तों - परिचितों के खूब काम आना चाहिए . उनकी मदद का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए . ये बड़े सौभाग्य और संतोष की बात होती है . इसी प्रकार यदि कोई दोस्त - - - सगा - सम्बन्धी तुम्हारी मदद करने में सक्षम और तत्पर दिखे तो उसका सहारा लेने में भी कोई शर्म - संकोच नहीं करना चाहिए . इससे उसका भी कुछ नहीं बिगड़ता और तुम्हारा भी काम आसान हो जाता है . दुनिया यूँ ही आसानी से चल सकती है . मेरे विचार से - - - संबन्धों की नीव ही रखी जाती है , सुविधाओं के त्वरित महल खड़े करने के लिए . जब - तब , जगह - जगह स्वाभिमान की आड़ - बाड़ व्यक्ति को संकुचित और उसके जीवन को बड़ी सीमा तक तकलीफ देह बना सकती है . " प्रोफ़ेसर साहब इतना कहकर कुछ रुके और गुलशन की आँखों में देखकर पुनः बोले --" वैसे भी - - - जैसा कि तुमने अभी कहा था कि अकेले रहने में कुछ ख़ास तकलीफ नहीं होती , इसी से स्पष्ट है कि कुछ न कुछ परेशानी तो होती ही है . अच्छा छोड़ो - - - अब ये बताओ - - - क्या तुमने अच्छी तरह सोचकर फैसला लिया है -- हमारे साथ न रहने का . मै तो कहता हूँ - - - एक बार और सोच लो ."
" सौ बार सोच लिया है . कोई भी काम करने से पहले , उसके प्रत्येक पक्ष पर बहुत बार सोचने की मेरी आदत है . एक बार कोई फैसला कर लेने के पश्चात मै सोचना बन्द कर देता हूँ . और फिर - - - तब करने की बारी आती है - - - और करते समय मै पुनः सोचा नहीं करता - - - सिर्फ करता हूँ . क्योंकि करते वक्त बार - बार सोचने से फैसले प्रायः कमजोर हो जाते हैं . " गुलशन ने दृढ़ता से कहा .
" तुम्हारी उम्र के नवयुवकों में यही तो एक कमी होती है - - - कि तुम लोग अपने रास्ते और सोच खुद बनाने में यकीन रखते हो . बड़े - बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ नहीं उठाते . खैर - - - जैसी तुम्हारी मर्जी . " प्रोफ़ेसर साहब ने हथियार डाल दिये .
गेसू - - - जो अभी तक बैठी सुन और गुन रही थी - - - अब सोच रही थी कि गुलशन थोडा हंसोड़ , बहुत शान्त और खूब गंभीर है - - - और अपने भीतर दर्द के गहरे सोते छुपाये हुए है .
" अच्छा - - - मै अब चलता हूँ . " गुलशन ने खड़े होकर - - - हाथ जोड़कर सबसे अनुमति मांगी .
" अपना पता नहीं बताओगे ? " प्रोफ़ेसर साहब ने कहा .
" हाँ - हाँ क्यों नहीं ! ये रहा मेरा पता . " गुलशन ने जेब से अपना साधारण सा विजिटिंग - कार्ड निकाल कर रख दिया और चलने को मुड़ा .
प्रोफ़ेसर साहब बड़ी आत्मीयता से बोले -- " कभी - कभार आते रहना . वैसे मेरे दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले है . तुम हमारे घर को अपना घर भले ही न बनाओ - - - लेकिन ये सच है कि तुमने हम सबके दिलों में अपना घर बना लिया है . जाओ - - - आना न भूलना . "
कंपकंपाते होठों से इतना कहकर प्रोफ़ेसर साहब ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया - - - और उनकी उँगलियाँ , पलकों की कोरों पर छलक आयी अपनी कमजोरी को चुपके से मिटाने लगीं .
गुलशन ने जवाब दिया -- " जी - - - जरूर आऊंगा . आता रहूँगा ,"
" चलो तुम्हें बाहर तक छोड़ दें . " चंचल ने औपचारिकता दर्शाई . सभी बाहर की ओर मुड़ने को हुए .
" अरे नहीं - - - आप लोग बेवजह कष्ट न करे . " गुलशन ने आभारी नज़रों से देखते हुए कहा .
" अच्छा - - - गेसू तुम जाओ , गुलशन को बाहर तक छोड़ दो . " प्रोफ़ेसर साहब ने निर्देश दिया .
अबकी गुलशन मना न कर सका . उसने मना करना भी न चाहा . क्योंकि आकर्षक नारी के अधिकाधिक सानिध्य की कामना पुरुषों के अचेतन मन में सामान्यतः होती ही है .
पिता के निर्देश पर ' जी अच्छा ' कहकर गेसू गुलशन के साथ हो ली . वह तो यही चाहती ही थी .
गेट के बाहर आकर - - - गेसू ने गुलशन पर अचूक मुस्कान मारकर पूछा -- " तो कब आ रहे हैं जनाब ? "
" फुर्सत मिलते ही ."
"रविवार का वादा करो ! "
" वादा नहीं करता . हाँ - - - कोशिश जरूर करूंगा . फिर भी - - - तुम मेरी प्रतीक्षा मत करना . "
" क्यों ? "
" क्योंकि प्रतीक्षा व्यक्ति को निराश बना सकती है . प्रतीक्षा यदि असफल रहे तो चिंता और मानसिक पीड़ा होती है ."
" लेकिन प्रतीक्षा के बिना भी कोई जीवन है ! जिसकी कोई प्रतीक्षा नहीं करता - - - समझ लो वह जीवन में असफल व्यक्ति है - - - और जो किसी की प्रतीक्षा नहीं करता - - - समझो उसके पास जीवन ही नहीं है . "
" वाह ! बड़ा सीधा सा है - - - तुम्हारा सफलता - असफलता का मापदण्ड . " गुलशन हंसकर बोला -- " अच्छा बाबा , आऊँगा - - - जरूर आऊंगा . बस- - -अब खुश ? "
" वादा ? "
" वादा . "
" बदलोगे तो नहीं , वादे से ? "
" बदलने वाला मौसम होता है गेसू - - - और मै आदमी हूँ . गरीब आदमी - - - जिसके पास भरोसा करने लायक एक - - - बस एक चीज होती है -- उसकी जबान . "
" ये तो रविवार को पता चलेगा . " गेसू कथक सी आँखें नचा कर बोली .
" अच्छा - - - तो अब चलता हूँ . " गुलशन मुड़ने को हुआ .
" हाथ नहीं मिलाओगे , चलते समय ? " गेसू ने शिकायती अंदाज़ में हाथ आगे बढ़ाकर कहा .
" उं - - - हूंअ - - - नहीं . मैंने सुना है - - - सुन्दर और जवान लड़कियों के शरीर में एक करेंट होता है . तुमसे हाथ मिलाने पर मुझे शॉक लग सकता है . मेरा मतलब है , झटका . और अब मै किसी तरह का झटका झेलने के लिए तैयार नहीं हूं . विशेषकर खूबसूरत झटका . "
" मतलब - - - तजुर्बा रखते हो , झटका खाने का ! बातों से तो ऐसा ही लगता है . " वह पलकें टिमटिमाकर हंसी .
उसकी बात सुनकर - - - गुलशन पहले तो अचानक गंभीर हुआ - - - फिर तत्काल हंसी का लबादा ओढ़ लिया - - - और न जाने कैसे उसके मुंह से अनायास निकल पड़ा -- " क्या तुम कुँवारी हो ? "
" हाँ - - - मै अविवाहित हूँ . " भेदभरी मुस्कान बिखेर कर गेसू बोली -- " अच्छा - - - अब विदा . रविवार को - - - . "
" आना नहीं भूलूंगा . शुभ विदा . " गुलशन ने गेसू की बात काटकर जवाब दिया और पलटकर वहां से चलने लगा . वैसे उसकी ये हरकत उसके पैरों को थोड़ा ना गवार लग रही थी .
जबकि गेसू उसे काफी दूर तक - - - देर तक देखती रही . यहाँ तक कि - - - जब वह चला गया - - - उसकी दृष्टि से ओझल हो गया - - - तब भी बहुत देर तक उसे देखती रही .

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