View Single Post
Old 05-02-2012, 09:32 PM   #9
Dr. Rakesh Srivastava
अति विशिष्ट कवि
 
Dr. Rakesh Srivastava's Avatar
 
Join Date: Jun 2011
Location: Vinay khand-2,Gomti Nagar,Lucknow.
Posts: 553
Rep Power: 35
Dr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond reputeDr. Rakesh Srivastava has a reputation beyond repute
Default Re: उपन्यास : टुकड़ा - टुकड़ा सच


( 5 )
रविवार !
गुलशन भूला नहीं था .
व्यक्ति जिस बात में दिलचस्पी रखता है - - - उसे भूलता नहीं .
रविवार को ही गुलशन ने गेसू से उसके घर पहुँचने का वादा किया था . वादे के अनुसार - - - गुलशन के उत्साही कदम लय पूर्वक स्वतः गेसू के घर का रास्ता तय करने लगे .
वह सोच रहा था , गेसू के विषय में . गेसू उसे कुछ अजीब सी , बेहद बेबाक मालूम पड़ रही थी . गेसू का यह जवाब कि ' मै अविवाहित हूँ ' , उसे बड़ा अटपटा लग रहा था . जबकि उसने पूछा था , ' क्या तुम कुँवारी हो ' . वह सीधे - सपाट यह भी तो कह सकती थी , ' हाँ - - - मैं कुँवारी हूँ ' . मगर उसने ऐसा नहीं किया था . और हाँ - - - जवाब देते समय - - - वह मुस्कराई भी तो बड़ी अजीब तरह से थी . भेद पूर्ण और जिज्ञासा उत्पन्न करने वाली मुस्कान .
अन्य लड़कियों कि अपेक्षा - - - कुछ अलगाव , कुछ नयापन जरूर था गेसू में . और जहां सामान्य से अलगाव होता है , नयापन होता है , वहीँ तो आकर्षण उत्पन्न होता है . गुलशन भी गेसू के प्रति अपने को इस आकर्षण से बचा नहीं पाया था .
सोचते - सोचते ही गेसू का घर कब आ गया , समय का कुछ पता ही न चला . रूचि पूर्वक किये गए कार्य देखते ही देखते पूरे हो जाते हैं .
गुलशन भीतर चला गया .
खुले घर में खामोशी का विस्तार था . इससे पता चलता था की गेसू घर में नहीं है . क्योंकि पहली मुलाकात में ही गुलशन ने जान - समझ लिया था कि जहाँ गेसू हो वहाँ खामोशी के लिए कोई स्थान नहीं बचता . बचते है तो शोख - चटक किन्तु गरिमामय कहकहे .
गुलशन को अपने आने की निरर्थकता का आभास हो चुका था . फिर भी - - - उसने आवाज़ दी -- " गेसू s s s ."
" कौ s s s न ? " संभवतः किनारे वाले कमरे से किसी लड़की का प्रश्न उभरा .
आवाज़ सुनकर गुलशन चौंका . उसे लगा- - - ये आवाज़ शायद उसके लिए नयी नहीं है .
तभी पायल कमरे से बाहर आई और गुलशन को देख कर इस तरह से चौंकी , जैसे उसने भूल से बिजली के नंगे तार पर पैर रख दिया हो .
गुलशन ने पायल को देखा देखा . पायल ने गुलशन को देखा . दोनों ने आश्चर्य से फैली अपनी आँखों को झपकाया और फिर देखा . कोई अंतर नहीं . वही शक्ल . बिलकुल वही .
" तुम यहाँ s s s ? " एक साथ - - - दोनों के मुंह से आश्चर्य में डूबी आवाज़ निकली .
और इसी के साथ - - - गुलशन और पायल के मस्तिष्क में बीते हुए दिन आकाशीय बिजली की तरह कड़क उठे . जिसके झटके ने उन्हें अतीत में धकेल दिया .
गुलशन और पायल कॉलेज में साथ - साथ पढ़ते थे . गुलशन हमेशा उससे प्रेम का शालीन प्रस्ताव करता था - - -- लेकिन पायल ने कभी भी उसके प्यार का उचित उत्तर न दिया था . वह गुलशन की इज्जत करती थी और उसे एक सच्चे दोस्त के रूप में देखती थी - - -- मगर कभी भी उसको जीवन - साथी के रूप में स्वीकार न कर पायी थी . और इस अस्वीकृति के पीछे उसके अपने कुछ पूर्वाग्रह एवं विचार थे , कुछ तर्क एवं सपने थे .
पायल अतीत की खाईं से शीघ्र ही बाहर निकल कर बोली --" ओह - - - तो तुम्हीं वो हो , जिसके विषय में गेसू मुझसे चर्चा कर रही थी . "
" हाँ - - - लेकिन तुम यहाँ - - - इस जगह कैसे ? "
" भाग्य था - - - जो ले आया . बेसहारों का भी कोई न कोई सहारा तो होता ही है ."
" काश - - - तुमने मुझ पर भरोसा किया होता ! " ठंढी आह भरकर गुलशन ने कहा -- " लेकिन तुम यहाँ आई कैसे ? "
पायल ने अपनी आप बीती गुलशन को सुना दी .
सुनकर - - - द्रवित गुलशन ने पूछा -- " उस दिन , जब मै यहाँ आया था , तब तुम कहाँ थी ? "
" बाहर गयी थी . "
" सब लोग कहाँ गये ? "
" प्रोफ़ेसर साहब और चंचल तो अचानक मिली एक जरूरी दावत में चले गये . रधिया सब्जी लेने गयी . जबकि गेसू तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी - - - तभी फोन पर उसे खबर मिली कि उसकी किसी सहेली की तबीयत अचानक काफी खराब हो गयी . वह उसी के यहाँ गयी है . कह गयी है - - - थोड़ी देर में आ जायेगी . जाते समय उसने मुझसे कहा था कि तुम्हें बैठा लूंगी . " पायल ने बताया .
उचित एकान्त जान - - - गुलशन ने नाज़ुक मोड़ देकर उसे टटोला -- " मैं अब भी तुमसे वैसा ही प्यार करता हूँ , जैसा पहले करता था . पायल ! मुझ पर भरोसा करके तो देखो . "
" लेकिन मेरा दिल , जो पहले भी तुम्हारा न ठा , अब किसी और की अमानत है ."
" कौन है - - - वो चमकीली भाग्य रेखाओं वाला खुश - नसीब ? "
" चंचल ."
" ओह - - - तो वो चंचल है . यही चंचल - - - जिसने तुम्हें शरण दी है ? "
" तुमने ठीक समझा . "
" तो इसका मतलब ये है - - - कि जो व्यक्ति तुम्हारी सहायता कर दे , तुम उसके एहसान तले दबकर उससे प्यार करने लगो ! "
" लेकिन एहसान करने वाले से लगाव हो जाना तो स्वाभाविक है . और फिर चंचल भी मुझसे प्यार करता है . पहल उसी ने की थी . "
" मगर मै भी तो तुमसे प्यार करता हूँ . पहल मैंने भी तो की थी . और - - - और मेरी पहल चंचल से पहले की है . बहुत पहले की . पायल ! मैं तुम्हें प्यार करता था , करता हूँ और करता रहूँगा ."
इतना कहते - कहते गुलशन की ऑंखें छलक उठीं और वह रो पड़ा . एक मर्द रो पड़ा - - - - - - और मर्द की रुलाई किसी भीषण अंदरूनी तकलीफ की सूचक है .
उसके दुःख को अनुभव कर - - - पायल आगे बढ़ी . उसने गुलशन के आंसुओं को अपने दामन में सोख लिया और बोली -- " क्या करूँ गुलशन ! मेरी सोच - - - मेरे और तुम्हारे बीच में शुरू से अवरोध उत्पन्न करती रही . और अब तो काफी वक्त गुज़र चुका है . बहुत देर हो चुकी है - - - और मै और चंचल काफी कुछ दूरी तय कर चुके है . "
" लेकिन मुझमें क्या कमी थी ? मै भी तो कुछ सुनूँ . कुछ जानूँ . "
" जानना ही चाहते हो तो सच - सच सुनो . क्योंकि तुम एक अच्छे इंसान हो और मै तुम्हारी बहुत इज्जत करती हूँ , इसीलिए मै तुम्हें अब अँधेरे में नहीं रखूंगी . "
" कुछ बोलो भी तो . " गुलशन परिणाम जानने के लिए उत्सुक किसी आवेदक की भाँति अधीर हो उठा .
" गुलशन ! एक उम्र के बाद भी बेरोज़गारी कि अनचाही मैली चादर तले ढंककर पुरुष की समस्त अच्छाइयाँ धूमिल पड़ जाती हैं . क्योंकि तुम भी अब तक बेरोजगार हो , इसलिए तुम मुझे भरपूर प्यार तो दे सकते हो - - - भरपेट रोटी नहीं . जबकि प्यार के निरंतर प्रवाह के लिए जिन्दा रहना ज़रूरी है - - - और जिन्दा रहने की पहली शर्त है रोटी -- ज़िन्दगी कि बुनियादी ज़रूरतें . गुलशन ! प्यार कोई कैक्टस नहीं , जो हर हाल में मस्त - मुस्कराता रहे . प्यार तो बहुत नाज़ुक चीज़ है -- छुई - मुई के पौधे की तरह . " पायल कहती रही -- " यदि मैं तुमसे शादी कर लेती , या कर लूँ , तो कुछ समय तक तो हम प्यार के खुमार के सहारे अपनी जीवन - नौका खे सकते हैं - - - मगर कुछ ही दिनों में हमारी भौतिक ज़रूरतें , जीने की पहली शर्त - - - बुनियादी आवश्यकताओं के जालिम सर्द थपेड़े , हमारे प्यार की गर्मी को ठंढा कर देंगे . पेट की धधकती आग के सामने प्यार की गर्मी शरमा जायेगी . और तब हमें - - - कम से कम मुझे अपने किये पर पछताना पड़ सकता है ."
" लेकिन मैं अपने सर्वोत्तम प्रयास तो कर रहा हूँ . संभव है - - - मुझे कुछ ही दिनों में नौकरी मिल जाय . भाग्य ने यदि साथ दिया तो हमारी समस्याएं सुलझ सकती हैं ."
" पर भाग्य के सहारे बैठी रहकर मैं अपनी ज़िन्दगी का जुआं खेलूँ - - - उसे दांव पर लगा दूं ! क्या तुम ऐसा चाहोगे ? "
" नहीं पायल - - - नहीं . मैंने ऐसा कब कहा ! -- मेरी तरफ देखो पायल ." गुलशन ने उसके कंधे पर दम तोड़ती उम्मीदों सा अपना बोझल हाथ रखकर कहा -- " पायल ! ये सच है कि मै तुम्हें दौलत नहीं दे सकता , महल नहीं दे सकता - - - पर मेरी मासूम मोहब्बत यूनानी गुलामों की तरह हर वक्त तुम्हारा हुक्म बजाएगी . मुझ पर यकीन करके तो देखो . तुम अगर साथ दो - - - तो तुम्हारे वास्ते मैं अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिये ज़मीन आसमान एक कर सकता हूँ . उलझी हुई तकदीर के ताने - बाने को तोड़कर एक नया नक्शा दे सकता हूँ . खूबसूरत आकार को साकार कर सकता हूँ . "
" वो तो मेरी भी तमन्ना है गुलशन . मैं चाहती हूँ , तुम खूब आगे बढ़ो . लेकिन जहां तक मेरा सवाल है , तो यूं समझ लो - - - जिस तरह पुलों के नीचे से गुज़रा हुआ नदी का पानी वापस नहीं लौट सकता - - - कुछ वैसे ही , मैं भी तुम्हारी सीमाओं से से काफी बाहर निकल चुकी हूँ - - - क्योंकि अब चंचल मेरी ज़िन्दगी में बहुत गहरे दाखिल हो चुका है - - - और हम दोनों ने एक दूजे को काफी गंभीरता से लिया है . इसीलिये फिर कहती हूँ , मेरा ख़याल छोड़ दो . "
" नहीं - - - नहीं - - - नहीं . " गुलशन रोते - रोते चीख पड़ा -- " मैं तुम्हारा ख़याल कैसे छोड़ सकता हूँ ! मैं तुम्हें कैसे बिसार सकता हूँ ! ! मैं तुम्हें नहीं भूल सकता . कभी भी नहीं . पायल ! बेशक तुम मुझे प्यार नहीं करती - - - मगर मैं तुम्हें हमेशा प्यार करूंगा . मैं तुम्हें उस तरह प्यार करूंगा , जैसे टूटे - हारे लोग तन्हाई से करते हैं . मैं तुम्हें ऐसा प्यार करूंगा , जैसे बसंत रंग - बिरंगे फूलों को करता है - - - किसान अपने खेतों से करता है . मैं तुम्हें उतना ही चाहूंगा , जितना चित्रकार अपने चित्रों को और माली अपने बगीचों को चाहता है . मैं हमेशा तुम्हें उस तरह याद करूंगा , जैसे कोई राहगीर सफ़र के बाद उस नदी को याद करता है , जिसके जल से उसने अपनी प्यास बुझाई थी . मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा . मैं तुम्हारा हूँ , तुम्हारा रहूँगा . "
" गुलशन ! मैं तुम्हारी भावनाओं की इज्जत करती हूँ और इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकती . मैं चाहती हूँ - - - तुम हमेशा उन्नति करो . "
" उन्नति करूँ ! " गुलशन चौंक कर बोला -- " क्या ख़ाक उन्नति करूँ !! अरे जब प्रेरणा का श्रोत ही दामन छुड़ा रहा है , तब उन्नति कैसे संभव है ? "
" उफ़ ! अब मैं तुम्हें कैसे अपनी मजबूरी समझाऊँ !! "
" - - - - - - - ."
" गुलशन ! एक बात कहूं ? "
" अभी कुछ शेष है क्या ? "
" हाँ . मेरी शादी चंचल से होने वाली है . उसने मुझे भद्र वचन दिया है . तुम भी वादा करो कि तुम मेरी खुशियों के बीच दीवार नहीं बनोगे . "
सुनकर - - - वह तो सन्न रह गया . जैसे कली चूने पर पानी पड़ गया हो . ढेर सारी भाप , ताप और सनसनाहट . उसे लगा जैसे उसे छिछोरा समझ कर किसी ने जोर का तमाचा जड़ दिया हो .
वह बिलबिला कर चीख पड़ा -- " पा s s s यल ! " लेकिन फिर यकायक पुनः स्वयं पर नियंत्रण करके बोला -- " हाय - - - क्या कह गयी तुम !! तुम्हारा प्यार सलामत रहे . कम से कम मुझसे ऐसी गिरी हुई बातों की आशंका तो मत करो . क्या मै तुम्हें छिछोरा नज़र आता हूँ ? मेरा प्यार तो चढ़ते हुए सूरज का प्यार है . वो तो रौशनी बनकर फैला है . उसने अंधेरों को उजाला देना सीखा है - - - और रौशनी कभी भी तुम्हारे रास्ते की दीवार नहीं बन सकती - - - बल्कि वो तो वक्त ज़रुरत खुद जलकर तुम्हें रास्ता ही दिखाएगी . " इतना कहकर गुलशन सिसकने लगा .
आशंका के बादल छंटे जान - - - पायल राहत की सांस लेकर बोली -- " मुझे तुमसे यही उम्मीद थी गुलशन . मैं तुम्हारी बहुत इज्जत करती हूँ मेरे दोस्त . पर बदकिस्मती से - - - . "
उसका गला रुंध गया . वह गुलशन के नज़दीक आ गयी . उसने गुलशन की ठोढ़ी के नीचे हथेली लगाकर उसके निराशा से बोझल झुके हुए सिर को ऊँचा किया , उसके आँखों के शून्य में झाँका और उससे लिपट गयी . गुलशन भी उसे पकड़ कर सिसकने लगा . ठीक उस बेबस बच्चे की तरह , जिसे आर्थिक अभाव के चलते उसका सबसे पसन्दीदा खिलौना नसीब नहीं होता .
थोड़ी देर बाद - - - गुलशन ने खुद को पायल की गिरफ्त से छुड़ाकर और अपने अकारथ आंसुओं को पोंछ कर कहा -- " अच्छा - - - अब मै चलता हूँ . "
" बैठो ! गेसू आती ही होगी . चाय पीकर जाना . "
" नहीं ! धन्यवाद . क्या करूंगा चाय पीकर ! आंसू क्या कम मिले हैं पीने को !! " गुलशन रुंधे गले से बोला -- " चलता हूँ . भगवान न करे - - - अगर कभी तुम्हें ज़िन्दगी की ऊबड़ - खाबड़ राहों में ठोकर लगे तो तुम मेरी ही बाहों में गिरने की कोशिश करना . वहां तुम्हें सहारा मिलेगा . एक भरोसेमंद सहारा . वैसे इस बात का शुक्रिया कि तुमने मुझे आईना दिखा दिया . "
" - - - - -- " पायल क्या कहती . वह चुप रही .
अचानक जैसे गुलशन को कुछ याद आया . वह बोला -- " यह रहा मेरा पता . "
गुलशन के हाथों ने पायल को अपना विजिटिंग - कार्ड पकड़ा दिया और उसके पाँव तेजी से मुड़कर दरवाजे के बाहर हो लिए .
और गेसू - - - हाँ वही - - - वो जल्दी से बगल में छिप गयी .
गेसू ने उन दोनों का सारा वार्तालाप संयोगवश सुन लिया था . वह बहुत देर पहले ही लौट आयी थी और दरवाजे की ओट में होकर उत्सुकतावश सब कुछ देख सुन रही थी . दरवाजे की ओट ! जो हमारे देश में आम तौर पर औरतों की ख़ास जगह रही है .
गुलशन जा चुका था - - - मगर पायल अब भी मेज पर सर झुकाए सिसक रही थी .
पायल सोच रही थी कि काश वो भी अँधा प्रेम करना जानती . काश - - - वो प्यार में दिमाग से नहीं , बल्कि पूरी तरह दिल से काम लेती . या फिर वो किसी जंगली जाति में पैदा हुई होती , जहां जीने की शर्तें बहुत आसान हुआ करती हैं -- लाज ढकने को चाँद पत्ते और पेट भरने को कन्द मूल . तब उसे गुलशन को जीवन - साथी बनाने में कोई परहेज़ न होता .


[7]
Dr. Rakesh Srivastava is offline   Reply With Quote