Re: तीन सौ रामायणें :: ए.के. रामानुजन
कहने की ज़रूरत नहीं कि पउमचरिय जैन तीर्थस्थलों के हवालों, जैन मुनियों, धर्मोपदेशकों और महापुरुषों की कथाओं से भरा पड़ा है। इसके अलावा, चूंकि जैन लोग खुद को बुद्धिवादी मानते हैं - हिंदुओं से भिन्न, जो कि उनके अनुसार अतिवादी, और अक्सर रक्तपिपासु, क़िस्म के सनकीपने और अनुष्ठानों में लिप्त रहते हैं - वे सुनियोजित रूप से चमत्कारिक जन्मों, पशु-बलियों इत्यादि से जुड़े प्रसंगों को छोड़ देते हैं (राम और उनके भाइयों का जन्म सामान्य तरीके से हुआ है)। वे रावण के दशानन होने की धारणा की भी बुद्धिसंगत व्याख्या करते हैं। रावण के जन्म पर उनकी मां को नौ रत्नों का एक कंठहार दिया गया था, जिसे मां ने रावण के गले में डाल दिया। उन्हें उसमें रावण के मुख के नौ प्रतिबिंब दिखे जिसके चलते उन्होंने रावण को दशमुख कहा। बंदर भी बंदर नहीं हैं, बल्कि दिव्य शक्तियों (विद्याहारों) का एक वंश है जिसके पुरखे रावण और उसके परिवार से संबंधित थे। उनकी पताका पर बंदर प्रतीक चिह्न के रूप में अंकित हैं : इसीलिए वे वानर कहे जाते हैं।
लिखित से मौखिक की ओर
अब हम एक दक्षिण भारतीय लोक रामायण को देखें। इन दक्षिण भारतीय लोक रामायणों में सामान्यतः कथा टुकड़ों-टुकड़ों में आती है। मिसाल के लिए, कन्नड़ में हमें सीता के जन्म, उनके विवाह, उनके सतीत्व की परीक्षा, वनवास, लव और कुश के जन्म, उनके पिता राम के साथ उनका युद्ध, और इस तरह की अन्य चीज़ों पर अलग-अलग आख्यानमूलक काव्य मिलते हैं। लेकिन पारंपरिक भाटों द्वारा कही गयी एक पूरी रामकथा भी मिलती है जिसमें हर दो पंक्तियों पर समूहगान में दुहरायी जाने वाली एक टेक है। अधोलिखित विचार-विमर्श के लिए मैं रामे गौड़ा, पी. के. राजशेखर और एस. बसवैया द्वारा किये गये लिप्यंकन का आभारी हूं।14
|