Re: श्रीयोगवशिष्ठ
उसमें महादुःख प्रकट होते हैं और शरीर जर्जर हो जाता है और मरता है । निदान एक क्षण भी मृत्यु इसको नहीं बिसारती । जैसे कामी पुरुष को सुन्दर स्त्री मिलती है तो उसके देखने का त्याग नहीं करता वैसे ही मृत्यु मनुष्य को देखे बिना नहीं रहती । हे मुनीश्वर! मूर्ख पुरुष का जीना दुःख के निमित्त है ।जैसे वृद्ध मनुष्य का जीना दुःख का कारण है वैसे ही मृत्यु मनुष्य को देखे बिना नहीं रहती । हे मुनीश्वर! मूर्ख पुरुष का जीना दुःख के निमित्त है । जैसे वृद्ध मनुष्य का जीना दुःख का कारण है वैसे ही ज्ञानी का‘जीना दुःख का कारण है । उसके बहुत जीने से मरना श्रेष्ठ है । जिस पुरुष ने मनुष्य शरीर पाकर आत्मपद पाने का यत्न नहीं किया उसने अपना आप नाश किया और वह आत्महत्यारा है । हे मुनीश्वर! यह माया बहुत सुन्दर भासती है पर अन्त में नष्ट हो जाती है ।
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