Re: श्रीयोगवशिष्ठ
इससे हे मुनीश्वर! मुझसे वही उपाय कहिये जिससे अहंकार का नाश हो ।जब अहंकार का नाश होगा तब मैं परमसुखी हूँगा । जैसे विन्ध्याचल पर्वत के आश्रय से उन्मत्त हस्ती गर्जते हैं वैसे ही अहंकाररूपी विन्ध्याचल पर्वत के आश्रय से मनरूपी उन्मत्त हस्ती नाना प्रकार के संकल्प विकल्परूपी शब्द करता है । इससे आप वही उपाय कहिये जिससे अहंकार का नाश हो जो अकल्याण का मूल है । जैसे मेघ का नाश करनेवाला शरत्काल है वैसे ही वैराग्य का नाश करनेवाला अहंकार है । मोहादिक विकाररूप सर्पों के रहने का अहंकाररूपी बिल है और वह कामी पुरुषों की नाईं है जैसे कामी पुरुष काम को भोगता है और फूल की माला गले में डालके प्रसन्न होता है वैसे ही तृष्णारूपी तागा है और मनरूपी फूल हैं सो तृष्णारूपी तागे के साथ गुहे हैं सो अहंकाररूपी कामी पुरुष उनको गले में डालता है और प्रसन्न होता है ।
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