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Old 17-09-2013, 11:28 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: लोक कथा: गुल बकावली


शहज़ादी बकावली रो-रोकर दीवानी हो गई पर फूल न मिलना था न मिला. उसने सोचा कि वह फूल को खुद ढूंढेगी. वह महल से बाहर निकल गई.

शहज़ादा जाने आलम खुशी-खुशी अपने महल वापस जा रहा था. रास्ते में उसे वही बुढ़िया मिली जिसकी आँखों पर चारों शहज़ादों ने नक़ली फूल को आज़माया था. शहज़ादे ने सोचा कि फूल को बुढ़िया की आँखों से लगाकर देखना चाहिए. जैसे ही फूल बुढ़िया की आँखों से लगा बुढ़िया ज़ोर से चिल्ला उठी, ‘‘मैं देख सकती हूँ भगवान तुम्हारी सारी मुरादें पूरी करे.’’ वह शहज़ादे को दुआएँ देती हुई अपने रास्ते को चल दी.



शहज़ादे के चारों भाई राजमहल वापस जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें यही बुढ़िया मिली. उन्होंने उसे
पहचान लिया और पूछा, ‘‘तू अँधी थी पर अब तेरी आँखें ठीक हैं. ऐसा चमत्कार कैसे हो गया.’’ बुढ़िया खुश होकर बोली, ‘‘एक नेक दिल नौजवान ने गुल बकावली को मेरी आँखों से लगाया और मेरी आँखें ठीक हो गईं.’’ शहज़ादों ने बुढ़िया से पूछकर उसके जाने का रास्ता पूछा और उसी तरफ़ दौड़ पड़े. शहज़ादे को उन्होंने पकड़ लिया और मार पीट कर उससे फूल छीन लिया.

चारों शहज़ादे बादशाह के पास पहुँच कर सिर झुकाकर खड़े हो गए. बादशाह को जब ये पता चला कि वे गुल बकावली लेकर आए हैं तो उसने जल्दी से फूल को अपनी आँखों से लगा लिया. बादशाह खुशी से चीख़ कर खड़ा हो गया और बोला,‘‘मैं अंधा नहीं हूँ. अब मुझे सब कुछ दिखाई दे रहा है.’’ उसने चारों शाहज़ादों को लगे लगा लिया.

सारे देश में खुशियाँ मनाई गईं. बादशाह की तरफ़ से सबको अशर्फियाँ हीरे मोती दान में दिए गए. उधर शहज़ादी बकावली अपने फूल को ढूँढती हुई बादशाह के देश पहुँची. वहाँ जाकर उसे मालूम हुआ कि बादशाह की आँखें किसी फूल से ठीक हुई हैं. वह समझ गई कि यह उसी का गुल बकावली है. वह एक दासी का रूप बनाकर राजमहल में रहने लगी जिससे वह अपने फूल को वापस पा सके.

शहज़ादा जाने आलम समझ गया कि उसके भाइयों ने उसे धोखा दिया है. उसने सोचा कि अब जाकर बादशाह को सारी सच्चाई बतानी चाहिए. वह अपने शहर की तरफ़ चल दिया. वहाँ पहुँच कर उसने जादूगरनी के बाल को सूरज की रोशनी दिखाई एक ज़ोरदार धमाके के साथ जादूगरनी हाज़िर हो गई. शहज़ादे ने हुक्म दिया कि बकावली जैसा महल बनाओ. जादूगरनी ने झुककर कहा,‘‘जो हुकुम मेरे आका.’’ कहकर जादूगरनी फुर्र से आसमान में उड़ गई और एक पल में आलीशान महल तैयार हो गया जिसमें नौकर चाकर पहरेदार और हज़ारों सिपाही शहज़ादे के सामने सर झुकाए खड़े थे.



शहज़ादा जाने आलम के अजीबोग़रीब महल और बेशुमार दौलत की शोहरत बादशाह के कानों तक पहुँची तो बादशाह ने सोचा कि जाकर देखना चाहिए कि वह कौन है जो उससे ज़्यादा मालदार और ताक़तवर है.

बादशाह ने अपने आने की ख़बर भिजवाई तो शहज़ादा बहुत खुश हुआ. उसने बादशाह को अपने सिपाही भेजकर बुलवाया. बादशाह की दासियों में गुल बकावली भी थी. शहज़ादे के महल को देखकर बादशाह हैरान रह गया. महल में हर चीज़ लाजवाब थी.

शहज़ादी बकावली महल को देखकर सोच में पड़ गई कि उसके महल जैसा महल शहज़ादे ने किस तरह बनवा लिया. इसका मतलब है कि मेरे फूल को इसी शहज़ादे ने चुराया है. बादशाह महल की एक-एक चीज़ को आँखें फाड़कर देख रहा था शहजादा अपने बाप को पहचान गया और बादशाह के क़रीब आकर बोला, ‘‘अब्बा हुजूर.’’ बादशाह ने जल्दी से शाहज़ादे को अपने सीने से लगा लिया. चारों शहज़ादे ज़ोर से चिल्लाए,‘‘नहीं. ये कोई मक्कार जादूगर है. आप इसकी बातों में मत आइए.’’ शहज़ादे ने जादूगरनी का दिया हुआ बाल निकाला और उसे सूरज की रोशनी दिखाई. एक ज़ोरदार धमाके के साथ जादूगरनी हाज़िर हो गई और सिर झुका कर बोली, ‘‘बादशाह सलामत यही आपका बेटा है और इसी ने बकावली के फूल से आपकी आँखें ठीक की हैं.’’ ये कह कर जादूगरनी ग़ायब हो गई. बादशाह ने शहज़ादे को फिर अपने सीने से लगा लिया और सारे देश में ऐलान करा दिया कि बादशाह के बाद शहज़ादा जाने आलम इस देश का बादशाह होगा.

शहज़ादे ने कहा,‘‘अब्बा हुजूर. मैं अब यहाँ नहीं रह सकता. मैं वापस परियों के देश बकावली जाना चाहता हूँ. वहाँ की शहज़ादी फरिशतों की तरह मासूम और जन्नत की हूरों की तरह पाक और हसीन है. मैं उस परियों की शहज़ादी से शादी करना चाहता हूँ.’’

बकावली शहज़ादी उनके सामने शर्म से झुक कर बोली,‘‘शहज़ादे. मैं भी आपको ढूंढती हुई यहाँ तक पहुँची हूँ. मैंने भी आपके जैसा नेक और ईमानदार इंसान नहीं देखा. मैं अपने महल वापस जाकर क्या करूँगी. अब यही मेरा घर है.’’ बादशाह ने दोनों के सर पर अपना हाथ रख दिया और शहज़ादे ने बकावली का फूल उसके बालों में लगा दिया. बादशाह ने दोनों की शादी की मुनादी करा दी और चारों शाहज़ादों को देश से निकाल दिया.
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