Re: लोक कथा: गुल बकावली
बचपन में गाँव में जाड़े के दिनों में अलाव के इर्द गिर्द बैठकर इस कहानी को दो तीन किश्तों में अपने दादा जी से सुनी थी। स्मृतियाँ ताजी होगई। रजनीश जी आभार एवं धन्यवाद।
ऐसी ही कुछ और भी कहानियां जैसे सहस्त्र-रजनी, बैताल-पच्चीसी, पंचतंत्र एवं सिंहासन-बत्तीसी आदि भी थीं जो उस समय जाड़े की रातों में हम बच्चों की साथी बनती थीं। अब तो टीवी ने बच्चों को अपने बड़े बूढों से दूर कर दिया है।
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