Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
रुबाइयों के हिन्दी अनुवाद
अन्य भाषाओं की तरह हिन्दी में भी रुबाइयों के कई अनुवाद हुए. जिनमें कुछ अनुवाद डॉ. हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” के पहले के हैं और कुछ बाद के. बच्चन जी की “मधुशाला”1935 में छ्पी थी. यहां यह स्पष्ट करना जरुरी है कि यह बच्चन जी की स्वतंत्र रुबाइयाँ हैं जिस पर उमर खय्याम का प्रभाव अवश्य रहा. बच्चन जी ने स्वयं भी खय्याम की चुनी हुई रुबाइयों
का अनुवाद छपवाया था.
हिन्दी में सबसे पहला अनुवाद शायदपंडित सूर्यनाथ तकरूद्वारा किया गया था. 1931 मेंपंडित गिरिधर शर्मा नवरत्नने भी रुबाइयों का अनुवाद किया, जो नवरत्न-सरस्वती भवन, झालरापाटन से छ्पा था. पंडित जी ने रुबाइयों का संस्कृत अनुवाद भी किया जो 1933 में छ्पा था.
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तने सन 1931 में उमरखैयाम की रुबाइयों का अनुवाद किया था. यह पुस्तकरुबाईयात उमर खय्यामके नाम से कानपुर के प्रकाश पुस्तकालय से प्रकाशित हुई थी. इस किताब को भी मैने ढूंढने की कोशिश की लेकिन नहीं मिली. कानपुर में माल रोड में पहले एक दुकान हुआ करती थी जहां हिन्दी की अधिकतर किताबें मिल जाया करती थी. वहां इस किताब के बारे में पता करने पर मालूम हुआ कि ये आउट ऑफ प्रिंट है लेकिन इसको जल्दी ही छपवाया जायेगा. ये बात आज से करीब 12-13 साल पहले की है. पता नहीं कि ये दुबारा छपी या नहीं.
1932 के आसपासपंडित केशव प्रसाद पाठकका हिन्दी अनुवाद आया. ये इंडियन प्रेस लिमिटेड, जबलपुर छपा था. 1932 में हीपंडित बलदेव प्रसाद मिश्रका अनुवाद प्रकाशित हुआ, जो मेहता पब्लिशिंग हाउस, सूत टोला, काशी से छ्पा था. हिन्दी साहित्य भंडार, पटना से 1933 मेंडॉक्टर गया प्रसाद गुप्तका अनुवाद भी छ्पा.
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