Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
बीस दिन की यात्रा के बाद वह वहीं पहुँचा जहाँ वह सिद्ध तपस्वी बैठा था। उसने आदरपूर्वक सिद्ध को प्रणाम किया और पूछा, क्या आप बता सकेंगे कि मुझे बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सोने का पानी कहाँ से मिल सकते हैं? तपस्वी ने कहा, बेटे, वह राह बहुत खतरनाक है। तुम वहाँ जाने का इरादा न करो और यहीं से लौट जाओ। वहाँ से अभी तक कोई वापस नहीं आया है। एक महीने से भी कम हुआ तुम्हारी ही शक्ल-सूरत का एक नौजवान मेरे लाख रोकने पर भी उधर गया था। वह भी नहीं लौटा है।
परवेज ने कहा, वह मेरा बड़ा भाई था। यह तो मुझे मालूम है कि वह जीवित नहीं है, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि वह कैसे मरा, किसी प्राकृतिक कारण से मरा या किसी दुश्मन ने उसे मारा। सिद्ध ने कहा, मैं तुम्हें बताता हूँ। बहुत-से आदमी मेरी चेतावनी के बावजूद उस राह पर गए और काले पत्थर बन कर वहीं पर रह गए। तुम्हारे भाई के साथ भी यही हुआ है। तुम मेरी बात मानो और लौट जाओ वरना तुम भी काला पत्थर बन कर यहाँ हमेशा पड़े रहोगे।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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