Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परवेज ने कहा, मैं आपका आभारी हूँ कि आप मेरे हितचिंतक हैं लेकिन मैं आगे पाँव बढ़ा चुका हूँ, पीछे नहीं हट सकता। आप मुझे वह रास्ता अवश्य बताएँ। सिद्ध ने कहा, मैं तुम्हारे साथ चल सकता तो कोई बात नहीं थी किंतु बुढ़ापे के कारण मैं नहीं जा सकूँगा। तुम जिद करते हो तो जाओ। यह गेंद ले लो। इसे जमीन पर रखोगे तो यह खुद लुढ़कने लगेगी और तुम इसके पीछे लग जाना। पहाड़ के नीचे जा कर यह रुकेगा और तुम उसी पहाड़ पर चढ़ जाना। तुम्हारे पीछे से किसी तरह की आवाजें आएँ तुम पीछे मुड़ कर न देखना वरना तुम भी पत्थर बन जाओगे। ऊपर जा कर तुम्हें बोलनेवाली चिड़िया मिलेगी और वही तुम्हें अन्य दो चीजों का पता बताएगी।
परवेज सिद्ध को माथा नवा कर सवार हो कर चला। गेंद उसे रास्ता दिखाती जा रही थी। कुछ देर बाद एक पहाड़ की तलहटी में जा कर गेंद रुक गई। परवेज घोड़े को वहीं खड़ा करके पहाड़ पर चढ़ने लगा। दो-चार ही कदम गया होगा कि उसने सुना कि पीछे से कोई डाँट कर कह रहा है, अबे ओ बदमाश, बदतमीज, कहाँ बढ़ा जा रहा है। रुक जा कमबख्त, तुझे सजा दूँ। परवेज को जल्दी क्रोध आ जाता था। उसने गालियाँ सुनीं तो उसका खून खौल गया और वह तपस्वी द्वारा दी हुई चेतावनी को भूल गया। उसने म्यान से तलवार खींच ली और पलट कर देखा कि गाली देनेवाले के टुकड़े-टुकड़े कर दूँ। किंतु पीछे देखते ही वह काले पत्थर का ढोंका बन गया और उसके घोड़े का भी यही हाल हुआ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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