Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परीजाद चिड़िया के बताए रास्ते पर चल कर जंगल में गई और वहाँ से गानेवाले पेड़ की टहनी तोड़ लाई। वह बहुत प्रसन्न थी कि तीनों चीजें मिल गई हैं। फिर भी उसे अपने भाइयों का ख्याल बना हुआ था। उसने चिड़िया से पूछा, यहाँ आने की राह में मेरे दोनों बड़े भाई काले पत्थर बने पड़े हैं। क्या यह संभव है कि मैं उन्हें फिर से जीवित करूँ? मैं तो यह नहीं पहचानती कि उन पत्थरों में कौन-से मेरे भाई हैं। चिड़िया ने कहा, तुम यह करो कि सुराही में जो सुनहरा पानी लाई हो उसकी एक-एक बूँद सारे शिला खंडों पर डाल दो। वे सभी लोग अपने पूर्व रूप में आ जाएँगे और उनके घोड़े भी। उन्हीं में तुम्हारे भाई भी होंगे जिनके पुनर्जीवित होने पर उन्हें पहचान लोगी।
शहजादी चिड़िया की बातें सुन कर प्रसन्न हुई और पिंजड़ा, सुराही और टहनी ले कर पहाड़ से उतरने लगी। जहाँ भी काले पत्थर दिखाई दिए उसने उन पर एक-एक बूँद सुनहरा जल छिड़क दिया। सारे पत्थर आदमी बन गए और उनके घोड़े भी असली रूप में आ गए। इन लोगों में बहमन और परवेज भी थे जो अपने-अपने घोड़ों के साथ जी उठे। परीजाद दोनों भाइयों को पहचान कर उनके गले लग कर रोने लगी। फिर उसने कहा, तुम्हें मालूम है, तुम्हारा क्या हाल था? उन्होंने कहा कि हमें तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी तक हम लोग सो रहे थे ओर अभी-अभी सो कर उठे हैं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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