View Single Post
Old 19-12-2010, 07:24 PM   #15
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: शतरंज के खिलाड़ी by प्रेमचंद

मीर साहब की फरजी पिटता था। बोले - मैने चाल चली ही कब थी?
मिर्जा - आप चाल चल चुके है। मुहरा वही रख दीजिए - उसी घर में।
मीर - उसमें क्यो रखूँ? हाथ से मुहरा छोड़ा कब था?
मिर्जा - मुहरा आप कयामत तक न छोड़े, तो क्या चाल ही न होगी? फरजी पिटते देखा तो धाँधली करने लगे।
मीर - धाँधली आप करते है। हार-जीत तकदीर से होती है। धाँधली करने से कोई नही जीतता।
मिर्जा - तो इस बाजी में आपकी मात हो गयी।
मीर - मुझे क्यो मात होने लगी?
मिर्जा - तो आप मुहरा उसी घर में रख दीजिए, जहाँ पहले रखा था।
मीर - वहाँ क्यो रखूँ? नही रखता।
मिर्जा - क्यों न रखिएगा? आपको रखना होगा।
तकरार बढ़ने लगी। दोनों अपनी-अपनी टेक पर अड़े थे। न यह दबता था, न वह। अप्रासंगिक बाते होने लगी। मिर्जा बोले - किसी ने खानदान में शतरंज खेली होती तब तो इसके कायदे जानते। वो तो हमेशा घास छीला किए, आप शतरंज क्या खेलिएगा? रियासत और ही चीज है। जागीर मिल जाने ही से कोई रईस नही हो जाता।




teji is offline   Reply With Quote