Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
29 अगस्त 2016
श्रीनगर में अखबार
आज सुबह अखबार में पढ़ा कि श्रीनगर (जम्मू व कश्मीर) में लोगों को अखबार पढ़ने को नहीं मिल रहा है. कारण यह है कि वहाँ पिछले लगभग 50 दिनों से दंगों की वजह से अशांति है, कर्फ्यू लगा हुआ है जिसकी वजह से न तो अखबारें आ रही हैं और न ही वितरित होती हैं. श्रीनगर में लोकल अखबार भी हैं और जालंधर, अमृतसर व जम्मू से भी अखबारें आती हैं. लेकिन अधिकाँश लोगों को दिल्ली से आने वाली अखबारों का इंतज़ार रहता है. वे राजधानी से मिलने वाली ख़बरों से राजनीति की दिशा तथा विभिन्न क्षत्रों में होने वाली गतिविधियों का जायज़ा लेना चाहते हैं और उनका आकलन करना चाहते हैं.
मैं जून सन 1980 से जून 1982 तक श्रीनगर में ही रहा. वहाँ मेरी पोस्टिंग थी. वहाँ दिल्ली और जम्मू से अखबारें हवाई जहाज से आती थी. जब शाम को हम ऑफिस से छुट्टी कर के बाहर निकलते थे तो रास्ते से अखबार खरीद कर ले जाते थे. दिल्ली से आने वाली फ्लाइट 2 बजे के करीब आती थी. उसी में अखबार भी आ जाते थे. मेरा ऑफिस पोलो व्यू में था और वहाँ से पैदल ही या स्कूटर पर शाम को लाल चौक होते हुये घर चला जाता था. उन दिनों मैं Indian Express पढ़ा करता था. शाम को घर पहुँच कर चाय पीते हुये अखबार पढ़ने आ भी अपना ही मजा था.
मैं आशा करता हूँ कि कश्मीर घाटी में जल्द से जल्द सामान्य स्थिति बहाल हो और जीवन फिर से अपनी पुरानी लय पर चलना शरू हो जाये.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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