Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
माण्डू, रानी रूपमती और बाज बहादुर
श्रेय: प्रताप सहगल
यह शब्द सुनते ही मन में रोमान कीस्वर लहरियाँ तेज़ी से बजने लगती हैं। यह दो अक्तूबर दो हज़ार ग्यारह की सुहावनी सुबहथी और हम लोग महेश्वर से माण्डू की ओर जा रहे थे। आज शशि ने अपने जीवन के सड़सठ वसंतपार किए हैं और हम दो घंटे की यात्रा के बाद माण्डू के प्रवेश द्वार पर हैं। उसप्रवेश द्वार पर मोटे अक्षरों में प्रेम की यह इबारत चमक रही है –‘प्रणय नगरीमाण्डू में आपका स्वागत है’। मझोली पहाड़ियों के बीच बसे माण्डू के साथ जुड़ी रूपमतिऔर बाज बहादुर की प्रेम कहानी प्रसिद्धि के चरम शिखर पर बैठी प्रेमियों औरसैलानियों को आमंत्रित करती रहती है।
प्रेम – सुनने में एक बहुत छोटा सा शब्द, लेकिन इसके साथ जुड़ी हुई हैं अनंत कहानियाँ, इतिहास के बदलते, बनते कई मोड़। सामाजिक और व्यैक्तिक स्तर पर समय के साथ जुड़ते रूप, अर्थ और ध्वनियाँ। प्रेम जितनी आसानी से पकड़ में आता है उससे कहीं ज़्यादा वक़्त लगताहै उसे समझने में, उसकी खुशबू बार-बार हाथों से छूटती है और बार-बार हम उसे पकड़ करमन के किसी ऐसे कोने में सुरक्षित कर लेना चाहते हैं कि बस उसकी खुशबू पहुँचे तोसिर्फ़ और सिर्फ़ हम तक। प्रेम को लेकर औरों की तरह मैं भी अक्सर परेशान रहा हूँ किप्रेम आखिर है क्या? प्रेम का माध्यम अगर देह है तो फ़िर प्रेम देह से बाहर कैसे है? क्या प्रेम सिर्फ़ कुत्ते की हड्डी है या अपने प्रिय के लिए सब कुछ छोड़ देने कीशक्ति। यहाँ तक कि अपनी हड्डी भी गल जाती हैं प्रेम में।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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