Re: मुहावरों की कहानी
आठ जुलाहे नौ हुक्का जिस पर भी ठुक्कम थुक्का
(भावार्थ: आठ जुलाहं के पास नौ हुक्के होते हुए भी इस बात का झगडा हो गया कि हुक्कों को आपस में किस प्रकार बांटा आये कि कोई हुक्के से महरूम न रह जाए. जुलाहे आमतौर पर सीधे साधे और मूर्ख समझे जाते थे. यह उसी का एक उदाहरण है)
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जुलाहों के भोलेपन या बुद्धूपन के अनेक किस्से प्रचलित हैं. एक किस्सा यह है कि एक बार दस जुलाहे एक रेगिस्तान पार कर रहे थे. वहां उन्हें मृग मारीचिका दिखाई दी जिसे उन्होंने नदी समझ कर पार किया. यह देखने के लिए कि कोई डूब तो नहीं गया, उन्होंने अपने को गिनना शुरू किया. हर आदमी ने गिना और हर बार एक आदमी गिनती में कम पाया. दरअसल, हर कोई अपने को गिनना भूल जाता था. सब ने कहा कि यह तो बड़ी भारी मुसीबत हो गई. यात्रा के शुरू में दस व्यक्ति थे परन्तु अब नौ रह गए थे. वह सब वहां बैठ कर रोने लगे.
उसी समय वहां से एक घुड़सवार निकला. उसने उनका किस्सा सुना और उन्हें गिन कर बताया कि वे नौ नहीं दस ही हैं और रोने की कोई बात नहीं है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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