Re: इधर-उधर से
सुभाषितम
शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे i
साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने वने ii
(भावार्थ: हर पर्वत पर मणियाँ नहीं मिलतीं, हर हाथी के भाल पर मोतियों की सजावट नहीं होती, हर
स्थान पर सच्चे साधू नहीं पाये जाते, और हर जंगल में चन्दन के वृक्ष भी प्राप्त नहीं होते)
गीतों में राग
1. आयो कहाँ से घनश्याम = खमाज
2. लागा चुनरी मैं दाग = भैरवी
3. नदिया किनारे हेराये = पीलू
4. बोले रे पपीहरा = मल्हार
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