29-09-2014, 05:20 PM
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Re: इधर-उधर से
मन्नू भंडारी > पहली कहानी का थ्रिल व रोमाँच
वरिष्ठ कथाकार मन्नू भंडारी
मेरे कलकत्ता जाने से काफी पहले से (श्री भंवरमल जी सिंधी के नेतृत्व में) मारवाड़ियों के बीच समाज सुधार का एक बड़ा क्रांतिकारी आन्दोलन शुरू हुआ था ..... उसकी विभिन्न गतिविधियाँ अभी भी चलती रहती थीं, यानी कि पूरे माहौल में एक जीवंतता ... कुछ विशिष्ट करने की ललक भरी सक्रियता. अगर कुछ नहीं थी तो साहित्यिक आबो-हवा. यूँ पढने का शौक घर में और मित्रों सब को था. खूब पढ़ते थे ... बहस-चर्चा भी होती थी, पर कुल मिला कर वह मन-बहलाव और समय-गुज़ारु पढ़ाई होती थी. ऐसे में बिना किसी की प्रेरणा और प्रोत्साहन केमैंने अपनी पहली कहानी ‘मैं हार गई’ मैंने कैसे लिखी, मैं खुद नहीं जानती. लिख तो ली पर समझ में नहीं आता था की किस्से सलाह-सुझाव मांगूँ. परिचय के दायरे में कोई था ही नहीं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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