Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ ऐसन बात नै है हो, जात पात के लड़ाई नै है, केतना बाभन है जेकरा मारपीट कर बूथ से भगा देल जा है। जात चाहे जे है पर गरीबका के कोई नै होबो है।’’ मैंने प्रतिवाद किया।
पढ़ने लिखने आदत ने मुझे इतनी समझ दे दी थी कि मैं वर्ग संधर्ष की बात समझ सकता था और जात पात की लड़ाई पर चर्चा कर सकता था। इतनी समझ तो मुझमें विकसित हो ही गई थी कि मैं समझ सकता था कि गरीबों की कोई जात नहीं होती भले ही उपर उपर सब ढोल पीटे। याद है मुझे जब पिछले चुनाव में मेरे फूफा को यह कर बूथ से लौटा दिया गया था कि तोर बोट पड़गेलो जा घर जा।
इसी बैठकी में यह तय हो गया कि विधायक जी जब वोट मांगने आयेगें तो नैजवान सब उनका विरोध करेगें।
इस बैठकी से घर लौटते रात के ग्यारह बज गए। रीना के घर के पास गुजरते हुए चौंकन्ना रहना पड़ता था ताकि कोई हमला न हो जाए। तभी देखा कि रीना पुलिया पर बैठी है, शायद मेरा ही इंतजार कर रही है।
आज वह बहुत उदास थी, जैसे हाथ में आया मोती का दाना कहीं चूक गया हो। शायद वह बहुत देर से इंतजार कर रही थी सो कुछ गुस्से में भी थी बोली-
‘‘कौन कन्याय तर इतना रात तक गप्प चलो हल।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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