Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
सुबह हुई और उदास मन से बाहर निकला तो हंगामा जम चुका था। नदी पर रात की चर्चा की खबर गांव के दबंगों तक पहूच चुकी थी और सुबह सभी के गारजीयनों से शिकायत दर्ज कराई जा रही थी पर वह धमकी के लहजों। मेरे घर भी एक संदेशबाहक आ धमका।
‘‘की सुराज दा, सरबेटबा नेता बने के फेरा में हो समझा दहो, यहां नेता बनेबाला के नुकसाने होबो है।’’
फूफा कुछ कहते इससे पहले ही मैं उलझ गया।
‘‘नुकसान से के डरो हई, कोशीश करके देख लहीं, रावण के धमड़ रहबे नै कैइलै और तों सब की हीं।’’
बहस के बीच अन्ततः फूआ तक बात पहूंच गई और उसने कोहराम मचा दिया।
‘‘इ बुतरू हमरा के बर्बाद करे पर पड़ गेल हें, बोला दहो बाप के जइतई यहां से।’’
मैंने अपनी सफाई दी, पर असर नहीं हुआ और फिर घर तक बात पहूंच ही गई। समूचे गांव में यह चर्चा फैल गई की हमलोग नरेश सिंह का विरोध करते है। और आखिरकर रीना तक भी बात पहूंच गई। आलाकमान। एक दिन राह चलते मिल गई।
‘‘साला अपन देखल नै जा है और दोसरके के देख ले चललै हें।’’ वह बहुत ही गरम थी। क्या जरूरत है यह सब करने की। चौतरफा हुए इस हमले में मैने रीना को आश्वासन दे दिया, अब आगे शिकायत नहीं मिलेगी। उसने कसम ले ली।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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