Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘खा हीं तो हमर किरिया।’’ और फिर राजनीति की ओर जाते कदम वहीं रूक गए पर दोस्तों ने इस मुहिम को मुहिम नाम से जारी रखा और चुनाव के दिन बुथ पर जम कर बम बाजी हुई। सुना कि सूटर सिंह ने लोगों को जुटा दिया और फिर जो कभी वोट नहीं देते थे उसने बुथ पर बोट डाला। पर इसके बाद गांव में नफरत की एक बड़ी लाइन खिंच गई और कई लोग एक दूसरे बोलना बतियाना बंद कर दिये.
आज तड़के बाबा के नहीं रहने की खबर मिली और मुझे एक बड़ा झटका लगा। बाबा के सहारे ही घर का खर्च चल रहा था और अब, जब वे नहीं रहे तो घर कैसे चलेगा यह सबसे बड़ा सवाल था। मैं भागा-भागा घर आया। घर में सभी रो रहे थे। बाबा का शव दरबाजे के बाहर रखा हुआ था। सामाजिक होने में आर्थिक विपन्नता सबसे बड़ी बाधक होती है और यही बाधा मुंह बाये सामने खड़ी। परंपरा के अनुसार बाबा के शव को बाढ़ के गंगा किनारे, उमानाथ घाट ले जाना है दाह संस्कार के लिए और इसके लिए अच्छी खासी रकम खर्चनी होगी। घर में एक फूटी अधेली नहीं थी और समाज के साथ जीना भी है, सो कर्ज का जुगाड़ किया जाने लगा। कर्ज का जुगाड़ करना भी मां की जिम्मेवारी बनी क्योंकि बाबा के मरने की खबर सुन छोटे चाचा कन्नी कटाने लगे और चाची ने पहले ही कह दिया कि हम कहां से कुछ देगें। सो बाबा के दाह संस्कार के लिए कर्ज खोजने के लिए मां ने मुझे एक दो जगह भेजा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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