Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
गांव में ऐसे अवसरो का इंतजार कर्जा लगाने वाले करते रहते है और जितनी अधिक मजबूरी होती है उतना अधिक ब्याज लिया जाता है। उसपर भी चिरौरी अतिरिक्त करनी पड़ती है। खैर गांव के ही कारू सिंह के यहां से पांच रूपये प्रति सैंकड़ा पर दस हजार रूपये कर्ज लिए गए और बाबा का दाह-संस्कार के लिए बाढ़ के उमानाथ घाट चल दिये। घर से शव को निकालने से पहले गांव के ही किर्तनिया टोली आ गई और निर्गुण गाते हुए बाबा के शव को गांव में घूमया गया। मैंने एक झोली में जै, कौड़ी और रिजगारी पैसा ले लिया और उसे समय समय पर लूटाता रहता। उसे लूटने के लिए गांव के बच्चे और बड़े दौड़ पड़ते, एक एक चवन्नी पर दस दस लोग गुथ्थमगुथ्थी। मान्यता थी कि बुजुर्ग के शव यात्रा में लुटाए गए पैसे का शुभ असर होता है।
निर्गुण गाने वालों की टोली- ‘‘कहमां से हंसा आ गेलई, कहंवां समां गेलई हो राम...’’ का निर्गुण गाते हुए शव के साथ घूम रहे थे। गांव के बाहर भाड़े की एक जीप आकर लग गई। गोतिया भाई सब उस पर सवार होने लगे। खास कर चांद चाचा, बालक बाबू, कामो सिंह, गोरे सिंह, बिरीज सिंह। ये लोग शव दाह करने के स्पेशलिस्ट थे और गांव में कोई मरता ये लोग जाते ही थी। हां इन लोगों का खास ख्याल रखना पड़ता, जिसके तहत गांजा की व्यवस्था करनी पड़ती और ये लोग गांव से ही इसके साथ शुरू हो जाते।
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|