Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
खैर, जीप के साथ गांव से निकला और रास्ते में एक दो जगह लोगों ने जीप रूकबाई और नास्ता किया, कहीं चाय पीया। किसी तरह हमलोग उमानाथ घाट पहूंचे। घाट के दोनो तरफ डोमराजा का बास था। घाट पर डोमराजा के नाम से ही डोम जाती को संबोधित किया जाता है और गांव के बड़े बुजुर्ग जो गांव में डोम जाती के लोगों की छाया से भी दूर रहते आज यहां उसे सम्मान से संबोधित कर रहे थे। प्रथम अग्नि उसी को देने है नहीं स्वर्ग का रास्ता बंद। हे भगवान। मन ही मन मैं सोंच रहा था। जब अन्तिम समय इसी को पवित्र मानते है तो ता उम्र इससे नफरत क्यो।
खैर, शवदाह को लेकर गंगा के किनारे शव को आम की लकड़ी पर सजा दिया गया और फिर आग देने के लिए डोमराजा की चिरौरी प्रारंभ हो गई। डोमराजा ने एक बीधा जमीन की मांग से अपनी मांग शुरू कि और अन्ततोगत्वा पांच सौ एक्कावन पर मान गया। चाचा जी ने मुखाग्नी दी और फिर गंगा स्नान करने के बाद हम लोग गंगा घाट के उपर आ गए। वहां कामो सिंह के द्वारा पहले से ही सबके लिए खाने की व्यवस्था की गई थी। फिर सबने मिलकर पूरी सब्जी और रसगुल्ले, छक कर खाए और वहां से चलकर घर आ गए।
इसके बाद प्रारंभ हुआ कर्मकांडों की परंपरा, जिसमें कई तरह की परेशानियों से जूझता हुआ दशकर्म का दिन आ गया। सबका मुंडन किया गया। फिर एकादशा के दिन पंडित जी को दान देने को लेकर काफी हो हल्ला हुआ और मान-मनौब्ल के बाद सब खत्म किया गया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 27-09-2014 at 10:47 PM.
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