Re: भाग्य और पुरुषार्थ
लेकिन राजकुमारी ने किसी भी प्रकार की सहायता लेने से मना कर दिया, जिससे महाराज को और भी ईर्ष्या हुई अपनी पुत्री से। क्रोध के कारण महाराज ने उस जंगल को ही नीलाम करने का फैसला कर लिया जिस पर उस लक्कड़हारे का जीवन चल रहा था।
एक दिन लक्कड़हारा बहुत ही चिंता मे अपने घर आया और अपना सिर पकड़ कर झोपडी के एक कोने मे बैठ गया। राजकुमारी ने अपने पति को चिंता में देखा तो चिंता का कारण पूछा और लक्कड़हारा ने अपनी चिंता बताते हुए कहा कि- जिस जंगल में मैं लकडी काटता हुँ, वह कल नीलाम हो रहा है और जंगल को खरीदने वाले को एक माह में सारा धन राजकोष में जमा करना होगा, पर जंगल के नीलाम हो जाने के बाद मेरे पास कोई काम नही रहेगा, जिससे हम अपना गुजारा कर सके।
चूंकि, राजकुमारी बहुत समझदार थी, सो उसने एक तरकीब लगाई और लक्कड़हारे से कहा कि- जब जंगल की बोली लगे, तब तुम एक काम करना, तुम हर बोली मे केवल एक रूपया बोली बढ़ा देना।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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