Re: शायर व शायरी
शायर व शायरी
साभार: मनमोहन सिंह ‘दर्द लखनवी’
सांस थमने लगी , कितने लाचार हैं
बस तेरी इक नज़र के तलबगार हैं
हमसे नज़रे चुराने की कोशिश न कर
प्यार तुझसे जो है क्या ख़तावार हैं
फूल खिलने लगे , दिल मचलने लगा
मेरे मुर्शिद के आने के आसार हैं
प्यार में अब वफ़ा करना मुश्किल बहुत
हम हैं उनसे वो हमसे खबरदार हैं
जिसको चाहें मिटादें बना दे जिसे
अब सियासत है करते ये अखबार हैं
वो इबादत की राहों पे चलते नहीं
कितनी गफलत में हैं जो गुनहगार हैं
दर्द सहना तो है अब ये आदत मेरी
चुभ रहे फूल है याँ चुभे ख़ार हैं
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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