जीवन से जुड़े रोचक पहलू
पं. रविशंकर ने भारत में पहला कार्यक्रम साल 1939 में दिया था। उस मसय उनकी उम्र महज 10 साल थी। देश के बाहर उन्होंने पहला कार्यक्रम साल 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ में दिया। वहीं, यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में दिया था।
वह साल 1949 से लेकर साल 1956 तक आल इंडिया रेडियो के संगीत निदेशक रहे।
पं. रविशंकर ने उस्ताद अलाउद्दीन खान से सितारवादन सीखा, जिन्हें वह प्यार से ‘बाबा’ कहा करते थे।
कवि-गीतकार अल्लामा मोहम्मद इकबाल के लिखे गीत ‘सारे जहां से अच्छा...’ की धुन पं. रविशंकर ने ही बनाई थी।
साल 1986 से लेकर 1992 तक वे राज्य सभा के सदस्य रहे।
नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी पं. रविशंकर का नाम नॉमिनेट किया जा चुका है।
पं. रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को ‘नट भैरव’, ‘अहीर ललित’, ‘यमन मांझ’ और ‘पूर्वी कल्याण’ सहित तकरीबन 30 नए रागों की सौगात दी।
1950-60 के दशक के मध्य वर्षों में पं. रविशंकर भारतीय संगीत के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय दूत बने।
उन्होंने अपना पहला राग वर्ष 1945 में तैयार किया और अपने सफल रिकॉर्डिंग कॅरियर की शुरु आत की।
उन्होंने कर्नाटक संगीत का उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत में मिश्रण किया। खास तौर पर उसकी ताल की गणितीय संरचना को शास्त्रीय संगीत में शामिल किया। उन्होंने प्रस्तुतियों में संगत करने वाले तबला वादकों को भी प्रमुख कलाकार के तौर पर तरजीह दिलाई।
पं. रविशंकर को सबसे अधिक प्रसिद्धि 1960 के दशक में उस समय मिली, जब उन्हें हिप्पियों ने स्वीकारा। अपने मित्र जॉर्ज हैरिसन के साथ मोंटेरेरी और वुडस्टॉक महोत्सवों में हिस्सा लेने और बांग्लादेश में आयोजित होने वाले कंसर्ट्स में भाग लेने के बाद वे पश्चिमी देशों के घर-घर में पहचाने जाने लगे।
उन्होंने तीन किताबें भी लिखीं, जिनमें से दो अंग्रेजी ‘माई म्यूजिक’ और ‘माई लाइफ एंड राग माला’ थी। इसके अलावा एक किताब ‘राग अनुराग’ बांग्ला भाषा में लिखी।
संगीत की नई खेप तैयार करने के लिए उन्होंने नई दिल्ली में ‘रविशंकर म्यूजिक सेंटर’ की स्थापना की थी।