06-05-2014, 09:07 PM
|
#28
|
Exclusive Member
Join Date: Jul 2013
Location: Pune (Maharashtra)
Posts: 9,467
Rep Power: 116
|
Re: मजेदार मनोरंजनात्मक :.........
कभी-कभी अज्ञानी होना भी जरूरी होता है.!! :
चुआजकल कितना भी हटो-बचो सूचनाओं से लदे-फदे सरपट दिमाग टकरा ही जाते हैं। एनसाइक्लोपीडिया हो रहे व्यक्तित्व तो कुचलते हुए निकल रहे हैं। हर कोने से विश्लेषण के बम फेंके जा रहे हैं। हर मुद्दे पर खूंखार तरीके से बहस के पंजे फैल रहे हैं। बस, नहीं दिख रहा है तो अज्ञानता का मजा! सहजता की मस्ती! विचार उल्टा है लेकिन चिंतन की मांग करता है क्योंकि एक मासूम-सा वो आदमी कहीं से भी झांकता नहीं मिल पा रहा है जिसे कुछ नया बताने पर आश्चर्य से खुला मुंह और चौंककर फैली आंखों का मजा मिल सके।
आखिर कहां लुप्त हो गए सब अज्ञानी?इलेक्शन को ही लीजिए, कौन जीतेगा, किसकी हालत पतली होगी हर कोने से आवाजें आ रही हैं। घर के कुत्ते-बिल्ली तक बताना चाह रहे हैं लेकिन आदमी कुछ इस दिशा में तवज्जो दे नहीं रहा है वरना, उनकी काएं-काएं को ध्यान से सुनिए तो बस, यही सबकुछ निकलेगा।मैच ही देख लीजिए टीम इंडिया क्यों हारी, विराट खराब क्यों खेला, कोई इतनी बारीकी से आपको समझा जाएगा कि इसके बाद तो आपके पास हर खिलाड़ी की तकनीकी खामी के चलते सिर धुनने या फिक्सिंग के बारे में सोचने के आलावा कोई काम नहीं रह जाएगा।
इन विशेषज्ञ सलाहों के बीच हर शॉट पर लोटने वाले वो क्लासिकल खेलप्रेमी कहां गए?अखबार उठा लीजिए, सेमीनार, लेक्चर प्रबंधन की शिक्षा दी जा रही होगी। जिंदगी की चुनौतियों से निपटने के गुर बताए जा रहे हैं। हर समस्या के साथ विशेषज्ञ मौजूद है पूरी सलाह के साथ। ज्ञान का अजीर्ण दिखाई दे रहा है हर तरफ। अब इसी आजीर्ण के चलते ही तो जिंदगी में तकलीफें हैं ये कोई नहीं बता रहा है!पहले जिंदगी सहज थी। जीने सीधा पैटर्न था। लालच भी एक स्तर से ज्यादा लालची नहीं था। अब नॉलेज बढ़ा है। दुश्वारियां बढ़ीं हैं। कंप्लीकेशन बढ़ा है।
तुर्रा देखिए हर दिशा से सरपट फेंका जा रहा नॉलेज संतोष नहीं दे रहा, कमतरी दिखा रहा है। दिमाग सूचनाओं का स्टोररूम बना जा रहा है। लोग बिना विचारे भरते जा रहे हैं।माना जाता है कि अज्ञानता के साथ तो फर-फर प्रश्न पूछने का हौसला रहता है। उधर, सूचनाओं की इफरात तो पहल करने में ही रोड़ा बन रही है। लोगों को हक्कानी गुट की पूरी मालूमात है, तालीबानियों के मामले में पेंटागन से ज्यादा जानकारी रखते हैं लेकिन दोस्ती के लिए फेसबुक नहीं ईमानदारीभरा दिल चाहिए, इसकी ‘नॉलेज’ नहीं है।
मूंदी चोट लगने पर संसार भर के डॉक्टरों के नंबर मिल जाएंगे। लेकिन घर बैठी मां के बताए हल्दी मिले दूध पर ‘बिलीव’ नहीं है।सो, इस रेडीमेड बुद्धिमानी के लिए क्या कहें। आपको नहीं लगता इससे ज्यादा तो खालिस अज्ञानता अच्छी है जो कम से कम आपकी अपनी तो है, है ना! :.........
अनुज खरे :
(लेखक युवा व्यंग्यकार हैं)
साभार :.........
__________________
Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread.
|
|
|