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Old 08-12-2014, 10:16 PM   #1
rajnish manga
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Default अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
(निर्भया प्रकरण की पृष्ठभूमि में)
साभार: मनोज वशिष्ठ

कितनी बेवकूफ़ थी वो ? पता नहीं ख़ुद को क्या समझती रही ? अपने वजूद पर इतराती ना जाने किस मुगालते में रही । सोच रही थी, कि आज़ाद देश में रहती है । अपनी मर्ज़ी से कुछ भी कर सकती है । कहीं भी, किसी भी वक़्त आ-जा सकती है । क्या हुआ, जो वो एक लड़की है क्या हुआ, जो वो रात के 9.30 बजे अपने पुरुष मित्र के साथ घूमने निकली है । आख़िर उसे भी खुली हवा में सांस लेने और अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जीने का पूरा हक़ है । कौन रोक सकता है उसको ? संविधान ने उसे भी तो बराबरी का दर्ज़ा दिया है । इसी नासमझी की उसे सज़ा मिली है । जिस शहर में देश का संविधान बनता है जिस शहर में उसकी आज़ादी के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं जिस शहर में उसकी जैसी कई महिलाएं क़ानून और संविधान की हिफ़ाज़त करने की ज़िम्मेदारी संभाल रही हैं उसी शहर के एक अस्पताल में वो एक बिस्तर पर पड़ी है । जूझ रही है ज़िंदगी और मौत के बीच । बदन पर जितनी चोटें हैं, उससे ज़्यादा घाव लगे हैं आत्मा पर । बेबसी उसकी आंखों से पानी बनकर बह रही है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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