26-12-2013, 10:35 PM
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#23
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Re: क्राइम न्यूज :.........
लड़कियों पर ही पाबंदी क्यों ? :.........
बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में एक ग्राम पंचायत ने कुंवारी लड़कियों के मोबाइल प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। खबरों के अनुसार ग्राम पंचायत की प्रधान के पति जाकिर अंसारी ने कहा कि पंचायत ने ऐसा करने वाली लड़कियों के परिवारों को भारी जुर्माना लगाने की धमकी भी दी है। प्रधान के रूप में काम करने वाले अंसारी ने कहा कि यह फैसला हजारों ग्रामीणों की सहमति से लिया गया है। उन्होंने कहा कि सभी परिवारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि फैसले का उल्लंघन न हो। पंचायतों के इस तरह के फैसले पहले भी आ चुके हैं। किसी पंचायत ने पान खाने पर लड़कियों के बाल काट डाले। किसी ने प्रेम विवाह करने पर लड़की को मारने का आदेश जारी कर दिया।
कुछ माह पहले किशनगंज जिले में एक पंचायत ने महादलितों को हुक्का-पानी बंद करने का फरमान सुनाया था। ऐसे कई मामले हैं जो हमारी नजरों में नहीं आते। लेकिन जो आते हैं उससे यह पता चलता है कि भारतीय ग्रामीण समाज किस कदर सामाजिक परंपराओं की कट्टरता से घिरा हुआ है। अशिक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा के झूठे बंधन, जाति और धर्म के नाम पर पाखंड का अंधेरा पंचायतों में छाया हुआ है। हालांकि कानून पंचायत को मोबाइल का प्रयोग करने वाली लड़कियों पर प्रतिबंध लगाने या उन्हें इनका प्रयोग करने से रोकने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन बिहार ही नहीं देश के अन्य प्रदेशों में यह पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व, औरंगाबाद जिले में पंचायत ने स्कूली छात्राओं के फोन प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया था।
यह समझ से परे है कि महिलाओं पर ही ये पाबंदियां क्यों आयद होती हैं। इसी साल ऐसा ही एक मामला दक्षिण राजस्थान में उदयपुर में सामने आया था। वहां कस्बे की पंचायत ने फरमान जारी कर लड़कियों को मोबाइल फोन दिए जाने पर पाबंदी लगाई थी। खाप पंचायतों ने कहा कि लड़के और लड़कियों को स्कूलों में साथ नहीं पढ़ाया जाए क्योंकि कम उम्र में जवानी जोश मारती है। ये हद दर्जे की सामाजिक अशिक्षा और असुरक्षा का परिणाम है। धर्म और संस्कृति के पैरोकारों की वजह से ही देश का चरित्र और हालात इस स्तर तक नीचे गिर चुके हैं कि देश महिला सुरक्षा में दुनिया में सबसे असुरक्षित देशों में शामिल है।
पंचायतों के हिसाब से औरत कमजोंर है, ताड़न की अधिकारी है, नर्क का द्वार है, पराया धन है और दान करने योग्य वस्तु है आदि आदि। उसे इंसान समझा जाता। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 सालों में इस देश में 60 लाख बेटियां मार दीं गई हैं। जो नहीं मार पाते वो बेटी के जन्म पर बुझ से जाते हैं फिर मन मारकर उसे स्वीकार करते हैं। इस समाज में महिलाओं का, बच्चियों का सम्मान आज भी नहीं हो रहा। बेटी का जन्म होने पर मां को ताना दिया जाता है। दूसरी तरफ लड़का कुछ भी करे, कहीं आए जाये, कैसा भी पहने कोई फर्क नहीं पड़ता पर लड़की के ऊपर तो हजार बंदिश होंगी। क्यों? इसके पीछे के सामाजिक कारणों पर विचार तो होना ही चाहिए, लड़कियों के प्रति सम्मान भाव जगाने की बहुत आवश्यकता है :.........
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Last edited by Dr.Shree Vijay; 27-12-2013 at 05:54 PM.
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