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Originally Posted by kumar anil
सभी को नमस्कार !
कभी कभी किसी की बात दिल को किस क़दर छू जाती है कि ज़ुबां ख़ामोश हो जाती है , शब्द ठिठकते हैँ , सहमते हैँ और फिर ख़ामोशी से निःशब्द हो जाते हैँ । भावनायेँ प्रधान हो जाती हैँ और शब्द गौण हो जाते हैँ । वैसे तो भावनायेँ बिना अभिव्यक्ति के मृतप्राय होती हैँ पर आवश्यक नहीँ कि उन्हेँ शब्दोँ की दरकार हो , वे तो संवेगोँ को भी माध्यम बना सकती हैँ और आज यही सीखा है मैँने अपने छोटे भाई विद्रोही से । जिसने मुझे रिश्ते की डोर मेँ बाँधकर मेरे उस दृष्टिकोण को परिवर्तित कर डाला जो मैँने बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते मेँ व्यक्त किया था कि रिश्तोँ के लिये आई कॉन्टैक्ट एक आवश्यक तथ्य है । पर जहाँ विद्रोही जैसे लोग होँ , वहाँ नयी परिभाषायेँ गढ़ने मेँ कोई वक़्त नहीँ लगता । विद्रोही , आज तुमने स्वयं को जिस रिश्ते मेँ बाँधा है , मैँ तुम्हारा आभारी रहूँगा और क़ोशिश करूँगा कि तुम्हारी उम्मीदोँ पर खरा उतरूँ ।
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स्वागत है आपका ! मै क्या हम अपनी खुशी बयां नहीं कर सकते ! आप की अत्यंत ज़रूरत थी यहाँ पे और अब हम समझते हैं की आप हमेशा हमारे साथ इस फोरम पर रहेंगे ! ये हमारा फोरम है और इसके महा नाविक आप जैसे ज्ञानी लोग हैं ! हम सब तो उन नाविकों के सामान हैं जिन्होंने तो अभी चप्पू पकडना भी ठीक से नहीं सिखा है अतः अब कृपया बीच मझधार में छोडकर न जाएँ !