Originally Posted by rajnish manga
आपकी बेटी, निर्भया
देशवासियों के नाम एक खुला ख़त
देश भर ने अन्त तक जो साथ, मेरा है दिया.
उसका हूँ आभार करती और, कहती शुक्रिया.
मृत्यु से पहले मिला जो दर्द, न कोई सहे,
घुट के जिनमें रह गये निर्दोष, मेरे कहकहे,
ज़िन्दगी में प्यार के दो-चार जो, सपने बुने,
वो भी जल्लादों के हाथों, जान से जाते रहे.
मेरा जीवन पददलित होना लिखा था हो गया,
क्रोध में औ’ आंसुओं में देश को तो डुबो गया,
आपके संघर्ष से इक मौत को इज्ज़त मिली,
वरना ऐसी जो खबर आई वही आहत मिली.
हाय अंतिम सांस में भी कुछ खटक सी रह गई,
एक ख्वाहिश थी जो अपना सर पटकती रह गई,
सोच कर जिसको मेरी आँखों में पानी आ गया,
वक़्त का यह ज़लज़ला, माता-पिता को ढा गया.
मेरी कॉलेज की पढ़ाई में स्वयं जो बिक गये,
मैं सोचती थी कुछ करूँगी वास्ते उनके लिये,
खुद अभावों में रहे लेकिन दिया हर सुख मुझे,
सुख न उनको दे सकी ये सोच देती दुःख मुझे.
होनी थी बैठी राह में, कुछ नहीं करने दिया,
ना चैन से जीने दिया ना चैन से मरने दिया,
मृत्यु मेरी है शहादत न ही मैं हूँ इक शहीद,
किन्तु मनायें आप जब क्रिसमस-दिवाली-ईद,
भाइयो, बहनों, बुज़ुर्गो भूलना मुझको न तुम.
फिर कोई जीवन दोबारा हो अँधेरे में न गुम.
भाइयो, बहनों, बुज़ुर्गो भूलना मुझको न तुम.
फिर कोई जीवन दोबारा हो अँधेरे में न गुम.
आपकी बेटी,
निर्भया
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