पर अगर हम इस मुद्दे पर गंभीरता से मनन करें तो कई बातें सामने आती हैं। भारत की ज्यादातर आबादी गरीब और मध्य वर्गीय है, जिसे सरकारी सहायता की ज़रूरत है। देखा जाए तो ग्रामीण भारत में गैस का उपयोग नाम मात्र ही होता है। वहां आज भी लोग लकड़ी और गोबर के कंडों पर आश्रित हैं। गैस का उपयोग शहरी अर्ध-शहरी क्षेत्र के लोग करते हैं और इसमें भी बड़े शहरों में उन लोगों का बड़ा हिस्सा मिलेगा जो रोज़ी रोटी के चक्कर में शहर पहुँचते हैं और किराए से रहते हैं। उनके पास वैध कनेक्शन नहीं होते — या वे बाजार भाव से सिलेंडर लेते हैं या एक दो किलो गैस लेकर काम चलाते हैं। ऐसे में कितने लोग और परिवार तो ऐसे ही इस दायरे से बाहर हो जाते हैं। जो बचते हैं उनमे पांच लोगों के परिवार को महीने में एक सिलेंडर पर 500 रूपये की सब्सिडी — यानि प्रति व्यक्ति 100 रूपये की सब्सिडी देने में भी सरकार को दिक्कत है।