३१०० ईसा पूर्व
१) सर्वप्रथम वेदव्यास द्वारा १०० पर्वों के रुप में एक लाख श्लोकों का रचित भारत महाकाव्य, जो बाद में महाभारत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
२) दूसरी बार व्यास जी के कहने पर उनके शिष्य वैशम्पायन जी द्वारा पुनः इसी "भारत" महाकाव्य को जनमेजय के यज्ञ समारोह में ऋषि-मुनियों को सुनाना।
२००० ईसा पूर्व
३) तीसरी बार फिर से *वैशम्पायन और ऋषि-मुनियो की इस वार्ता के रूप में कही गयी "महाभारत" को सूत जी द्वारा पुनः १८ पर्वों के रुप में सुव्यवस्थित करके समस्त ऋषि-मुनियों को सुनाना।
१२००-६०० ईसा पूर्व
४) सूत जी और ऋषि-मुनियों की इस वार्ता के रुप में कही गयी "महाभारत" का लेखन कला के विकसित होने पर सर्वप्रथम् ब्राह्मी या संस्कृत में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रुप में लिपी बद्ध किया जाना।
भंडारकर संस्थान द्वारा
इसके बाद भी कई विद्वानो द्वारा इसमें बदलती हुई रीतियो के अनुसार बदलाव किया गया, जिसके कारण उपलब्ध प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियो में कई भिन्न भिन्न श्लोक मिलते हैं, इस समस्या के निदान के लिये पुणे में स्थित भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान ने पूरे दक्षिण एशिया में उपलब्ध महाभारत की सभी पाण्डुलिपियों (लगभग १०, ०००) का शोध और अनुसंधान करके उन सभी में एक ही समान पाये जाने वाले लगभग ७५,००० श्लोकों को खोजकर उनका सटिप्पण एवं समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित किया, कई खण्डों वाले १३,००० पृष्ठों के इस ग्रंथ का सारे संसार के सुयोग्य विद्वानों ने स्वागत किया।
जनमेजय के सर्प यज्ञ समारोह पर वैशम्पायन जी ऋषि मुनियों को महाभारत सुनाते हुए