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Originally Posted by abhisays
ऐसा नहीं है, डॉलर मजबूत होने से सभी को फर्क पड़ेगा। कुछ उदहारण देखो। - एक छात्र जिसे विदेश में पढ़ना है, उसे अब ज्यादा फीस देनी होगी।
- जिन फिल्मों के शूटिंग विदेश में होती है उनमे अब ज्यादा पैसा लगेगा।
- पेट्रोल और डीजल के दाम बढेंगे और इससे कैस्केडिंग इफ़ेक्ट होगा, ट्रांसपोर्ट कॉस्ट बढेगा और रोजमर्रा के सामान भी महेंगे होगे. २ लाइन में कहाँ जाए तो एक छोटी पेंसिल से लेकर एक बड़ी कार, सब कुछ महंगी हो जायेगी।
- नब्बे के दशक से पहले इन बातो का ख़ास फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन अब भारत की अर्थव्यवस्था पर इन बातो का काफी असर पड़ता है।
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इसी सन्दर्भ में ...
तब भी भारतीय जनमानस में उमंग थी जब दो रूपये में बाज़ार से बोरा भर कर सामग्री लाई जाती थी। क्यों तब पगार आठ आने से आठ-दस रूपये हुआ करती थी। (सन १९८४ में मैं स्वयं १८० रूपये प्रतिमाह की पगार पर कानपुर में किराए के कमरे में प्रसन्नतापूर्वक रह लेता था).
भारतीय जनमानस में अभी भी उमंग है जब हम सभी मंहगाई को बराबर कोस रहे हैं क्योंकि पगार की अपेक्षाकृत अब सैलरी का आकार हज़ारों गुना विशाल हो चुका है।
हम तब भी प्रसन्न रह सकेंगे जब रुपये और डालर का अनुपात १०० : १ हो जाएगा क्योंकि तब सैलरी की अपेक्षाकृत पैकेज अधिक ताकतवर हो चुका होगा।
भारत एक कृषिप्रधान देश है अतः भारतीय जनमानस पर डालर के ताकतवर होने का इतना अधिक प्रभाव नहीं पडेगा कि भारतीय राष्ट्रपति को अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा की तरह विश्व में घूम घूम कर देश की जनता के लिए जेब खर्च मांगना पड़े। जब पूरे विश्व ने आर्थिक तबाही मची हुयी थी, बैंक दीवालिये हो रहे थे तब भारत बड़ी शान किन्तु शालीनता से इस आर्थिक भूचाल को सहन कर रहा था।
हमें भारत देश और भारतीय मुद्रा पर गर्व है।