20-08-2014, 10:05 PM
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#663
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
Quote:
Originally Posted by dr.shree vijay
यूं ही सोचता हूँ मैं अक्सर,
तुझे किस तरह सजा दूँ मैं,
तेरी आरज़ू करूँ और फिर,
तेरा ख़याल तक भुला दूँ मैं.......
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मुझे पता है वो कब की चली गई होगी
खड़ा हुआ हूँ मैं बस की कतार में अब भी
ज़माना हो गया तुमसे मिले हुये 'अलवी'
तुम्हारा नाम है यारों के यार में अब भी
(मुहम्मद अलवी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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