Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by rajnish manga
मुझे पता है वो कब की चली गई होगी
खड़ा हुआ हूँ मैं बस की कतार में अब भी
ज़माना हो गया तुमसे मिले हुये 'अलवी'
तुम्हारा नाम है यारों के यार में अब भी
(मुहम्मद अलवी)
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भीग जाएगी पसीने से जो पेशानी मेरी
कौन अपने नर्म आँचल की हवा देगा मुझे
कौन अब पूछेगा मुझसे मेरी माज़ूरी का हाल
कौन बीमारी में जिद करके दवा देगा मुझे
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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