Re: इधर-उधर से
पर्युषण पर्व के अंतर्गत ही क्षमावाणी पर्व के महत्व के बारे में आदरणीय मुनि विद्यासागर जी इस प्रकार हमें बताते हैं:
दस दिनों तक चलने वाला यह पर्युषण पर्व जैन समुदायी बहुत ह*ी सद्*भाव और संयम से मनाते है। इसमें क्षमावणी पर्व का अपना एक अलग ही महत्व होता है। क्षमा पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है।
क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूँढकर, क्रोध से होने वाले अनर्थों के बारे में सोचना और अपने क्रोध को क्षमारूपी अमृत पिलाकर अपने आपको और दूसरों को भी क्षमा की नजरों से देखना।
अपने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना और दूसरे के प्रति भी इसी भाव को रखना इस पर्व का महत्व है। अपने अंदर क्षमा के गुणों का निरंतर चिंतन करते रहना।
क्षमा पर्व मनाते समय अपने मन में छोटे-बड़े का भेदभाव न रखते हुए सभी से क्षमा माँगना इस पर्व का उद्देश्य है। हम सब यह क्यों भूल जाते हैं कि हम इंसान हैं और इंसानों से गलतियाँ हो जाना स्वाभाविक है।
ये गलतियाँ या तो हमसे हमारी परिस्थितियाँ करवाती हैं या अज्ञानतावश हो जाती हैं। तो ऐसी गलतियों पर न हमें दूसरों को सजा देने का हक है, न स्वयं को। यदि आपको संतुष्टि के लिए कुछ देना है तो दीजिए ‘क्षमा’।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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