30-03-2013, 10:31 PM
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#15
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Re: इधर-उधर से
सबसे पहले दो शेर मुलाहिज़ा कीजिये:-
तुमने किया न याद भी भूल कर हमें
हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया.
(शायर: ज्ञात नहीं)
खुदा की कसम उसने खायी जो आज
कसम है खुदा कि मज़ा आ गया.
(शायर: ज्ञात नहीं)
अब संस्कृत की एक सूक्ति पर विचार करें:-
उद्यमेन हि सिध्यन्ति, कर्माणि न मनोरथ:
न हि सुप्तस्य सिंघस्य, प्रविशन्ति मुखे मृग:
(भावार्थ: उद्यम करने से और कर्म करने से ही मनोरथ सिद्ध होते हैं, जिस प्रकार सोये हुए सिंह के मुंह में मृग स्वयं चल कर नहीं आ जाते बल्कि उसके लिए सिंह को भी कर्म करना पड़ता है)
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