Re: भूपेन हजारिका : श्रद्धांजलि
1940 में मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर भूपेन ने तेजपुर को अलविदा कर दिया। गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज में भूपेन को दाखिला मिला। तब भूपेन मामा के घर में रहकर पढ़ाई करने लगे। भूपेन ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वास्तव में उनकी पढ़ाई तीसरी कक्षा से शुरू हुई थी और उनके पिता ने उनकी उम्र एक वर्ष बढ़ाकर लिखवाई थी। हाफ पैंट पहनकर जब भूपेन कॉलेज गए तो चौकीदार ने पूछा-- ‘क्या तुम कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में पढ़ते हो ?' भूपेन ने कहा-- ‘मैं कॉलेज में पढ़ने आया हूं।' चकित होकर चौकीदार ने पूछा-- ‘क्या तुमने मैट्रिक पास कर लिया है ?' भूपेन ने कहा-- ‘हां !' इसी तरह कक्षा में अध्यापक पी. सी. राय ने नन्हें भूपेन को देखकर वही सवाल पूछा। फिर जब भूपेन ने दृढ़ता के साथ बताया कि वह मैट्रिक उत्तीर्ण कर कॉलेज में पढ़ने आये हैं, तब जाकर पी. सी. राय को यकीन हुआ।
कॉलेज में नवागत विद्यार्थियों के लिए स्वागत समारोह आयोजित हुआ। भूपेन को पिता ने एक भाषण अंग्रेजी में लिखकर दिया था। जब भूपेन को मंच पर बुलाया गया तो भाषण भूलकर उन्होंने गाना सुनाया -
दुरनिर हरिणी सरू गांवखनि
तार एटि पंजाते सरू बांधेर मुखबनि ...
विद्यार्थियों के साथ ही अध्यापकगण भी भूपेन का गायन सुनकर मंत्रमुग्ध हो उठे। पी. सी. राय, वाणीकान्त काकती, लक्ष्मी चटर्जी, डॉ. सूर्य कुमार भुइयां आदि अध्यापकों ने भूपेन को आशीर्वाद दिया। भूपेन कॉलेज में लोकप्रिय हो गये।
भूपेन संगीत विषयक पुस्तकें ढूंढ-ढूंढकर पढ़ते थे। भातखण्डे की पुस्तक का बांग्ला अनुवाद उन्होंने पढ़ा। इसके अलावा लक्ष्मीराय बरुवा लिखित ‘संगीत कोष' का भी उन्होंने अध्ययन किया। साहित्यिक पत्रिका ‘आवाहन' में प्रकाशित होने वाले संगीत विषयक लेखों को भी वह गौर से पढ़ते थे।
भूपेन के पिता गुवाहाटी आ गये थे और एक छोटे से किराये के घर में भूपेन अपने माता-पिता के साथ रहने लगे थे। उसी समय द्वितीय विश्वयुद्घ छिड गया था और कॉटन कॉलेज अमेरिकी सैनिकों का अड्डा बन गया था। अचानक महंगाई बढ़ गयी थी। चावल पांच रुपए प्रति सेर बिकने लगा था। उधर पिता सेवानिवृत्त होने वाले थे और पेंशन के रूप में उन्हें 145 रुपये प्रतिमाह मिलने वाले थे। तब भूपेन आठ भाई-बहन थे। इतने बड़े परिवार के भविष्य का प्रश्न था। पिता ने जीवन भर दूसरों की मदद की थी। कभी अपने परिवार के सुरक्षित भविष्य के लिए कोई बचत नहीं की थी, न ही जमीन-जायदाद खरीदी थी।
युद्घ के कारण जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। 1942 में भूपेन के पिता सेवानिवृत्त हुए। परिवार का गुजारा चलना मुश्किल हो गया। उस दौरान भूपेन को भयंकर अभाव की स्थिति का सामना करना पड़ा। गोपीनाथ बरदलै को भी फाकाकशी की स्थिति से गुजरना पड़ रहा था। भूपेन के पिता के साथ उनकी दोस्ती थी। वे आपस में चावल बांटते थे, ताकि दोनों के परिवार के चूल्हे जलते रहें। पिता ने भूपेन से कहा कि उसे बनारस जाकर आगे की पढ़ाई करनी होगी। कलकत्ता में बम गिराया गया था और वहां के हालात ठीक नहीं थे। इसीलिए पिता ने भूपेन को बनारस भेजने का फैसला किया। पिता ने कहा कि वह प्रतिमाह भूपेन को 6॰ रुपये भेजेंगे। 6॰ रुपये से ही भूपेन को अपने रहने, खाने और पढ़ने का खर्च चलाना पड़ेगा।
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