Re: युद्ध और शांति
... सुबह जब कोहरा छंटने लगा तो अचानक रूसी कमान चौकी से लगभग सवा मील दूर फ्रांसीसी सैनिक नज़र आए|जनरलों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं|
“क्या? दुश्मन? नहीं-नहीं! देखिए-देखिए! वही है! शायद...क्या है यह सब?” घबराती आवाजें सुनाई दीं|
“बस, आ गया निर्णायक क्षण! यही है मेरा दायित्व!” प्रिंस आंद्रेई ने सोचा और घोड़े को चाबुक मारकर प्रधान सेनापति के पास जा पहुंचा|“रोकना चाहिए इन फ्रांसीसियों को, महामहिम!” वह चिल्लाया|
ऐन उसी क्षण चारों ओर धुंआ फ़ैल गया, पास ही कहीं गोलियां चलीं और भयभीत भोली आवाज़ में कोई चिल्लाया: “लो भैया, हो गया काम तमाम!” यह आवाज़ मानो कोई आदेश थी| सब भागने लगे|
लड़ाई के मैदान में भगदड़ मच गई, पैदल, घुड़सवार, तोपची सभी की मिली-जुली भीड़ निरंतर बढ़ती जा रही थी| इस भीड़ को न केवल रोकना असंभव था, खुद अपने को भी इसके साथ भागने से रोक पाना नामुमकिन था| एक बार भीड़ में फंस जाने पर उससे अलग हो पाना मुश्किल था| कोई चिल्ला रहा था: “अबे, चल! क्या खड़ा है?” कोई दौड़ते-दौड़ते पीछे मुड़कर हवा में गोलियाँ दाग रहा था; कोई प्रधान सेनापति के घोड़े को ही चाबुक मार रहा था|
“रोको इन कमबख्तों को!” भागते सिपाहियों की ओर इशारा करते हुए प्रधान सेनापति उखड़ती आवाज़ में चिल्लाए| पर ऐन उसी क्षण सनसनाती गोलियां चिड़ियों के झुंड की तरह बगल से गुज़रीं|
फ्रांसीसी सेना तोप बैटरी पर हमला कर रही थी, प्रधान सेनापति को देखकर उनकी दिशा में गोलिया दाग दीं| कुछ जवान ढह गए, झंडा लिए खड़े अफसर के हाथ से झंडा छूट गया और डगमगा कर गिरने लगा, बगल में खड़े सिपाहियों की संगीनों पर थम गया|
शर्म और गुस्से से भावाभीभूत प्रिंस आंद्रेई का गला रुंध आया था, वह घोड़े से उतरकर झंडे की ओर दौड़ रहा था|
“आ गया वक्त!” झंडे का डंडा पकड़ते हुए उसके दिमाग में यह विचार कौंधा, गोलियों की सनसनाहट उसके मन में उत्साह भर रही थी| ये गोलियां प्रत्यक्षतः उसी पर चलाई जा रही थीं|
“चलो, जवानो!” बालकों की खनकती आवाज़ में प्रिंस आंद्रेई चिल्लाया|
“हुर्रा!” प्रिंस आंद्रेई ने हुंकारा भरा और आगे दौड़ चला, भारी झंडे को वह मुश्किल से संभाल पा रहा था|
रती आवाज़ें उसे सुनाई दीं| उसने आंखें खोलीं| उसके ऊपर फिर वही ऊंचा आकाशथा, तिरते बादल और भी ऊपर चले गए थे और उनके पार फ़ैली हुई थी निस्सीम नीलिमा|
यह था युद्ध और शांति उपन्यास पर आधारित रेडियो-नाटक का पहला भाग |
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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