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Originally Posted by rajnish manga
आपने ठीक कहा, बहन पुष्पा जी. विभाजन की त्रासदी झेल चुकी पीढ़ी इस पीड़ा को कभी भुला नहीं पाई. आपको जान कर हैरानी होगी कि स्वयं मेरे दादाजी व दादी ट्रेन में आते समय क़त्ल कर दिए गए थे. यह 1947 की बात है जब साम्प्रदायिक दंगे अपने चरम पर थे. ट्रेनों की ट्रेन इस अमानवीय कत्लेआम की मूक गवाह बन रही थी. कत्लेआम होने वाले लोगों में हिन्दू भी थे और मुसलमान भी. स्त्रियाँ भी थीं और पुरुष भी, छोटे भी थे और बड़े भी.
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ओह भाई सॉरी ... बहुत दुःख हुआ ये जानकर की दादाजी और दादीजी की हत्या इस तरह हुई थी .. इन्सान को भगवान ने इतनी बुध्धि दी है हिरदय दिया है क्यूँ लोग इतने क्रूर हो सकते हैं .. काश कोई समझते ..