Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
इस रिसार्टका पूरा परिसर ही काव्यमय है। दो छोरों से पानी से घिरा हुआ। नए पुराने पेड़, जल मेंउगे श्वेत और रक्ताभ वर्णी कमल। तालाब पर बने हुए लकड़ी के रास्ते और पुल। एक ओररेस्तरां और बार। कुछ और कमरे। बाहर खुली पार्किंग यानी ऐश्वर्य की माडेस्टव्याख्या करता हुआ लग रहा था यह रिसार्ट्। शाम ढलने को है, लेकिन हमारे मन काउत्साह नहीं। हम जल्दी से जल्दी बाजबहादुर और रूपमती की प्रेम-गाथा के बारे मेंजानना चाहते हैं। कुछ बातें इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं और कुछ लोगों के ज़हनोंमें। कुल मिला कर इस प्रेम-कहानी का स्वरूप कुछ इस तरह से बनता है। सन 1542 मेंशेरशाह ने मालवा पर हमला किया और अपनी जीत के बाद शुजात खाँ को वहाँ का गवर्नरनियुक्त किया। शुजात खाँ ने मृत्यु पर्यंत मालवा पर एक स्वतंत्र शासक की तरह से हीराज किया।
1554 में शुजात खाँ की मृत्यु हो गई और उसके तीन पुत्रों में से ही एकपुत्र मलिक ब्याजीद ने अपने आप को बाज बहादुर के रूप में माण्डू का शासक घोषित करदिया। शुरू में तो बाज बहादुर ने उत्साह से राज-काज संभाला लेकिन एक युद्ध में रानीदुर्गावती से मिली शिकस्त के बाद वह पूरी तरह से संगीत की ओर मुड़ गया। कहा जाता हैकि एक बार नामी-गिरामी संगीतकार यदुराय के यहाँ एक संगीत-सम्मेलन में जाने का अवसरबाज बहादुर को भी मिला। वहीं उसकी मुलाक़ात रूपमती से हुई। रूपमती भी संगीत मेंनिष्णात थी और इस तरह से दोनों के प्रेम सागर में संगीतमय हिलोरें उठने लगीं। यहीरूपमती बाद में बाज बहादुर की प्रेमिका और पत्नि बनी। बाज बहादुर ने रूपमती से विवाह किया था या नहीं, इस बारे में दो तरह की राय प्रचलित है लेकिन दोनों की प्रेम-कहानी के बारे में सभी एकमत हैं कि दोनों का प्रेम आज भी प्रेम की एक अप्रतिभ मिसाल है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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