सर जी, हमारे पास रिमोट होने का यह मतलब कतई नहीं के हम यह सब रोक पाएंगे!
हमें यह लगता है की हम टीवी देख रहें है....लेकिन दरअसल टीवी हमें देख रहा होता है ! पहले यह होता था के प्रोग्राम के बीच विज्ञापन आते थे, अब विज्ञापनों के बीच कार्यक्रम देखने पड़ रहें है। ईस विज्ञापन का मार हमें हर तरफ से झेलना पड रहा है । टीवी, न्यूझपेपर, होर्डिंग्स, पोस्टर, मोबाईल, ईन्टरनेट हर जगह पर लुभावने विज्ञापन का मायाजाल हमें घेरे हुए है। हम सभी जानतें है की विज्ञापनों में ७०-८० प्रतिशन झुठ होता है, execution होता है लेकिन फिर भी हम उनके झांसे में फंस ही जाते है।