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Old 25-12-2015, 01:45 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: Double Role In Hindi Movies

अब तो खैर हर चीज में बहुत बदलाव आ गया है। इस कला को भी लोग बहुत हद तक समझने-बूझने लग गये हैं पर शुरुआत मे तो जैसे ही 'सिनेमा हाल' के दरवाजे पर लटके काले-भारी पर्दे को हटा दर्शक अंदर जाता था तो उसे लगता था जैसे किसी जादूनगरी में प्रवेश कर गया हो। सामने हंसती-गाती छायाओं को अपने आस-पास महसूस कर रोमांचित हो उठता था। डूब जाता था किरदारों के दुःख-सुख मे। सक्षम अभिनेता बहा ले जाते थे अपने अभिनय के द्वारा उसे किसी और लोक मे। भूल जाता था वह इस दुनिया को।


फिर समय, कहानी की मांग और कुछ नये की चाहत में पर्दे पर एक नये आविष्कार ने जन्म लिया, एक अनोखा माया जाल रचा गया। एक ही नायक या नायिका के दो रूप यानी "डबल रोल" का। इसने तो जैसे हंगामा ही मचा दिया। दर्शक भौंचक्का रह गया। फिल्म देखते हुए उसका ध्यान इसी उधेड़बुन में लगा रहता था कि आखिर ये दृश्य फिल्माया कैसे गया होगा। कैमरा ट्रिक का राज बाद में साफ होता तो चला गया। पर किरदारों का डबल रोल हिट फॉर्मूले के रूप में निर्माताओं द्वारा अपना लिया गया। क्योंकि डबल रोल का मतलब एक ही टिकट में डबल मजा। अपने चहेते नायक को और ज्यादा देर पर्दे पर देखने का मौका। दर्शक इसी लालच से सिनेमाघर तक खिंचने लगे। ये चलन बरसों चला। दशकों पहले के पारंगत तलवारबाज हीरो रंजन से लेकर अभी हालिया रीलीज औरंगजेब तक बीसीयों अभिनेताओं ने परदे पर दो - दो किरदार जीए. देश की हर भाषा में बनने वाली फ़िल्म में ऐसे प्रयोग किए जाते रहे। जिनमे बहुतेरे सफल भी हुए और लोकप्रिय भी। बीच में तीन-तीन किरदारों और एकाध बार नौ किरदारों को लेकर भी फिल्में रची गयीं पर ये प्रयोग उत्कृष्ट अभिनय के बावजूद सफल नहीं हो पाए।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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