Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
इश्क ने यहाँ कितनों को कोई और मुकद्दर दिया
दिल को तन्हाई तो आँखों को समंदर दिया
इबादत-ए-इश्क में जिसे पूजते रहे खुदा मान कर
उस कातिल को इस इश्क ने ही तो खंजर दिया
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घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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