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Originally Posted by jai_bhardwaj
उचित विचार है किन्तु ऐसा विचार आते समय मन में दोहरापन ना हो ...
क्योंकि जब हमारी बारी होती है तो हम अपनी स्वतन्त्रता की बात जोर शोर से करते हैं...
किन्तु जैसे ही यही विचार हमारी प्यारी सी बिटिया के मन आते हैं तो हम उसके विरोधी हो जाते हैं ......(आनर किलिंग इसी द्विविधा का विक्षिप्त रूप है )..
भारत में सामाजिक परिवर्तन निरंतर और तेजी से हो रहे हैं (अभी यह कहना उचित नहीं होगा कि ये परिवर्तन ऊर्ध्वगामी हैं या अधोमुखी ) अतः निकट भविष्य में ऐसे विचारों का साकार स्वरुप अवश्य देखने को मिलेगा /
अभी बच्चे के जन्म के समय माँ का नाम होता है
विद्यालय के प्रवेश पत्र पर पिता के साथ माँ का नाम भी अंकित होने लगा है
पिता की संपत्ति में बेटी को बराबर का अधिकार मिल चुका है
पति की संपत्ति पर उसकी मृत्यु के बाद संतान के साथ पत्नी का नाम भी लिखा जाने लगा है
लडकियां अपना जीवनसाथी चुनने में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं तभी तो दूल्हों से अधिक दुल्हने अपनी वारात को वापस करने लगी हैं
लडकियां किसी भी क्षेत्र में अध्ययन, व्यवसाय और नौकरी कर रही हैं
उपरोक्त मामलों में भले ही अभी संख्या अल्पतम हो किन्तु आरम्भ हो चुका है और क्रमशः विकास की और अग्रसर है / धन्यवाद /
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आपके विचार आदरणीय है जय जी