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Originally Posted by kumar anil
कभी कभी अनावश्यक , अनापेक्षित रूप से जानबूझकर क्लिष्ट ( कठिन ) शब्दोँ के प्रयोग से हम सहज आकर्षण के केन्द्रबिन्दु तो हो सकते हैँ मगर भाषा का मखौल उड़ाकर ।
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कई फिल्मों में इसे दिखाया जा चूका है
हृषी दा की धर्मेन्द्र और अमिताभ अभिनीत क्लासिक "चुपके चुपके" को कौन भूला सकता है
फिल्म का विषय यही था
जिसमें शुद्ध हिंदी का मजाक बनाया गया था