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Old 26-04-2013, 08:50 PM   #20
jai_bhardwaj
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Default Re: ज़िन्दगी ... .



कुछ इस तरह से ज़िन्दगी बीती मेरी
कि हर ख्वाब धुंधला हो गया

शकल और सवाल दोनों अनजान थे मेरे लिए
बिना पहचान के यह फासला बनता गया

हाँ, बस इतना याद था मुझे कि वो मुझमे ही था कहीं
यही जवाब तो मुझे सवालों में उलझाता गया

क्या पूछता मैं उससे वो अनजान था मेरे लिए
फिर क्यों अपनी पहचान दे गया

अगर जाना ही था उसे तो
क्यों अपनी यादें मुझे दे गया

कभी कभी मैं सोचता हूँ, इन उलझे सवालों के बीच
उलझन के हर पहलू में ,वह रंग तो भर गया
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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