कुछ इस तरह से ज़िन्दगी बीती मेरी
कि हर ख्वाब धुंधला हो गया
शकल और सवाल दोनों अनजान थे मेरे लिए
बिना पहचान के यह फासला बनता गया
हाँ, बस इतना याद था मुझे कि वो मुझमे ही था कहीं
यही जवाब तो मुझे सवालों में उलझाता गया
क्या पूछता मैं उससे वो अनजान था मेरे लिए
फिर क्यों अपनी पहचान दे गया
अगर जाना ही था उसे तो
क्यों अपनी यादें मुझे दे गया
कभी कभी मैं सोचता हूँ, इन उलझे सवालों के बीच
उलझन के हर पहलू में ,वह रंग तो भर गया