Re: डार्क सेंट की पाठशाला
मां का पुरुषार्थ मंत्र
रायगढ़ के राजा धीरज अपना राज भली-भांति चला रहे थे। प्रजा भी उनके शासन से खुश थी। अच्छे शासन के कारण उनकी प्रसिद्धि के चलते राजा धीरज के अनेक शत्रु भी हो गए। एक रात उन शत्रुओं ने गहरी साजिश रच कर राजदरबार के पहरेदारों को अपनी ओर मिला लिया और महल में जाकर राजा को दवा सुंघा कर बेहोश कर दिया। उसके बाद उन्होंने राजा के हाथ-पांव बांधकर एक गुफा में ले जाकर बंद कर दिया। राजा को होश आया, तो वह अपनी दशा देखकर घबरा उठा। तभी उसे अपनी मां का बताया हुए एक मंत्र - ‘कुछ कर, कुछ कर, कुछ कर’ याद आ गया। राजा की निराशा दूर हो गई और उसने शक्ति लगाकर हाथ-पैरों का बंधन तोड़ डाला। तभी अंधेरे में उसका पैर सांप पर पड़ गया, जिसने उसे काट लिया। राजा घबराया, किंतु फिर तत्काल ही उसे वही मंत्र - ‘कुछ कर, कुछ कर, कुछ कर’ याद आ गया। उसने तत्काल कमर से कटार निकाल कर सांप के काटे स्थान को चीर दिया। खून की धारा बहने से वह फिर घबरा उठा, लेकिन फिर उसी मंत्र की प्रेरणा पाकर कपड़ा फाड़कर घाव पर पट्टी बांध ली, जिससे रक्त बहना बंद हो गया। इतनी बाधाएं पार कर लेने के बाद उसे उस अंधेरी गुफा से निकलने की चिंता होने लगी। साथ ही भूख-प्यास भी व्याकुल कर रही थी। निकलने का कोई उपाय न देख वह सोचने लगा कि अब तो यहीं भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर मरना होगा। वह उदास होकर बैठा ही था कि फिर उसे मां का बताया हुआ मंत्र याद आ गया और वह द्वार के पास आकर गुफा के मुंह पर लगे पत्थर को धक्का देने लगा। लगातार जोर लगाने पर अंत में पत्थर लुढ़क गया और राजा गुफा से निकल कर अपने महल में वापस आ गया। जिस समय उसकी मां ने उसे वह मंत्र दिया था, उस समय उसे वह बड़ा अजीब और बेकार लगा था, लेकिन उसी ने उसकी जान बचाई। वह समझ गया कि कभी भी निराश होकर बैठने के बजाय अपने पुरुषार्थ से संकट का हल निकालना चाहिए।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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