Re: डार्क सेंट की पाठशाला
हीनता की ग्रंथि को तोड़ना ही होगा
जब तक मनुष्य अपने जीवन में आत्मविश्वास की ज्योति नहीं जलाता, तब तक उसकी शक्तियां मूर्च्छित और सुप्त ही रहती हैं। आत्मविश्वास के अभाव में वह अपनी पहचान करने में असमर्थ होता है। कहा जाता है कि ज्ञान का सागर विशाल है, पर जब तक मनुष्य अपने स्वरूप को नहीं पहचानेगा और आत्मविश्वास पैदा नहीं करेगा, ज्ञान के सभी पक्ष अधूरे हैं। उसके अभाव में मनुष्य सम्राट होकर भी स्वयं को भिखारी के समान समझता है या इसका उलटा भी हो सकता है। आइंस्टीन आरंभ में अन्य विद्यार्थियों की तुलना में मंदबुद्धि समझे जाते थे। वे अपने शिक्षकों के सवालों के ठीक - ठीक उत्तर नहीं दे पाते थे। इसके लिए उनके सहपाठी उनकी पीठ पर मूर्ख और बुद्धू जैसे उपहासास्पद शब्द लिख देते थे, पर आइंस्टीन कभी हीनता की भावना का शिकार नहीं हुए। बाद में वे महान वैज्ञानिक के रूप में सारे विश्व में प्रसिद्ध हुए। व्यक्ति और परिस्थिति का गहरा सम्बंध है। जिसे जीवन में अनुकूल स्थितियां प्राप्त होती हैं, वह बड़ी सहजता से विकास कर सकता है। प्रतिकूल परिवेश में सफलता पाना किसी के लिए भी कठिन होता है, लेकिन असंभव हरगिज़ नहीं होता। ऐसी स्थिति में जीवन का संघर्ष बढ़ जाता है, लेकिन विपरीत परिस्थिति में भी दीनता से मुक्ति पाना जरूरी है। दीनता और हीनता की ग्रंथि कारागार के बंधन के समान है। उसे तोड़े बिना विकास का कोई भी सपना साकार नहीं हो सकता। जिस प्रकार अभिमान करना पाप है, उसी प्रकार स्वयं को दीन - हीन समझना भी पाप है। इससे सहज विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। हम अपने मनोबल से धीरे - धीरे परिस्थितियों को बदल सकते हैं। एक बार एक सिंह शावक परिवार से बिछुड़ गया और सियारों के समूह में मिल गया। वह खुद को उन्हीं का बच्चा समझने लगा। एक दिन जंगल में उसे किसी सिंह के दहाड़ने की आवाज सुनाई दी। इससे उसका सोया हुआ सिंहत्व जाग गया। उसने भी जोर से दहाड़ मारी। सारे सियार भाग खड़े हुए अर्थात मनोबल और आत्मविश्वास सब कुछ बदल सकता है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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